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जिसमें गच्छ' शब्द का प्रयोग मुनियों के समूह के लिए हुआ हो। प्राचीनकाल में तो मुनिसंघ के वर्गीकरण के लिए गण, शाख, कुल और अन्वय के ही उल्लेख मिलते हैं। कल्पसूत्र स्थविरावली के अंतिम भाग में वीर निर्माण के लगभग 600 वर्ष पश्चात् निवृत्तिकुल, चन्द्रकुल, विद्याधर कुल और नागेन्द्रकुल- इन चार कुलों के उत्पन्न होने का उल्लेख मिलता है। इन्हीं चार कुलों से निवृत्ति गच्छ, चन्द्र, गच्छ आदि गच्छ निकले। इस प्रकार प्राचीन काल में जिन्हें 'कुल' कहा जाता था वे ही आगे चलकर 'गच्छ' नाम से अभिहित किये जाने लगे। जहाँ प्राचीन समय में गच्छ' शब्द एक साथ विहार (गमन) करने वाले मुनियों के समूह का सूचक था वहाँ आगे चलकर वह एक गुरु की शिष्य परंपरा का सूचक बन गया। इस प्रकार शनैः शनैः ‘गच्छ' शब्द ने 'कुल' का स्थान ग्रहण कर लिया। यद्यपि 8वीं -9वीं शताब्दी तक 'गण', शाखा'
और 'कुल' शब्दों के प्रयोग प्रचलन में रहे, किन्तु धीरे-धीरे ‘गच्छ' शब्द का अर्थ व्यापक हो गया और 'गण', 'शाखा' तथा 'कुल' शब्द गौण हो गये। आज भी चाहे श्वेताम्बर परंपरा के प्रतिष्ठा लेखों में 'गण', 'शाखा' और 'कुल' शब्दों का उल्लेख होता हो, किन्तु व्यवहार में तो गच्छ' शब्द का ही प्रचलन है।।
'गच्छ' शब्द का मुनि समूह के अर्थ में प्रयोग यद्यपि 6ठीं - 7वीं शताब्दी से मिलने लगता है। किन्तु स्पष्ट रूप से गच्छों का आविर्भाव 10वीं शताब्दी के उत्तरार्ध
और 11वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध से ही माना जा सकता है। बृहदगच्छ, संडेरगच्छ, खरतरगच्छ आदिगच्छों का प्रादुर्भाव 10वीं-11वीं शताब्दी के लगभग ही हुआहै।
__ प्रस्तुत ग्रंथ में हमें मुख्य रूप से अच्छे गच्छ में निवास करने से क्या लाभ और क्या हानियाँ हैं, इसकी चर्चा के साथ-साथ अच्छे गच्छ और बुरे गच्छ के आचार की पहचान भी कराई गई है। इसमें यह बताया गया है जो गच्छ अपने साधु-साध्वियों के
आचार एवं क्रिया-कलापों पर नियंत्रण रखता है, वही गच्छ सुगच्छ है और ऐसा गच्छ ही साधक के निवास करने योग्य है। प्रस्तुत ग्रंथ में इस बात पर भी विस्तार से चर्चा हुई कि अच्छे गच्छ के साधु-साध्वियों का आचार कैसा होता है ? इस चर्चा के संदर्भ में प्रस्तुत ग्रंथ में शिथिलाचारी और स्वच्छन्द आचार्य की पर्याप्त रुप से समालोचना भी की गई है। यह एक सुनिश्चित तथ्य है कि जैन परंपरा में भगवान महावीर ने एक कठोर आचार परंपरा की व्यवस्था दी थी किन्तु कालक्रम में इस कठोर आचार व्यवस्था में शिथिलाचार और सुविधावादी प्रवृत्तियों का विकास हुआ किन्तु