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________________ 254 शान्तिश्रेणिक के चार शिष्य हुए - (1) स्थविर आर्य श्रेणिक, (2) स्थविर आर्य तापस, (3) स्थविर आर्य कुबेर और (4) स्थविर आर्य ऋषिपालित। इन चारों शिष्यों से क्रमशः चार शाखाएँ निकली - (1) आर्य श्रेणिका, (2) आर्य तापसी, (3) आर्य कुबेरी और (4) आर्य ऋषिपालिता । स्थविर आर्य सिंहगिरि के चार शिष्य हुए - (1) स्थविर आर्य धनगिरि, (2) स्थविर आर्य वज्र ( 3 ) स्थविर आर्य सुमित और (4) स्थविर आर्य अर्हद्दत । स्थविर आर्य सुमितसूरि से ब्रह्मदीपिका तथा स्थविर आर्य वज्रस्वामी से बज्रीशाखा निकली। आर्य वज्र स्वामी के तीन शिष्य हुए - (1) स्थविर आर्य वज्रसेन, (2) स्थविर आर्य पद्य और (3) स्थविर आर्यरथ । इन तीनों से क्रमशः तीन शाखाएँ निकलीं- (1) आर्य नागिला, (2) आर्य पद्मा और (3) आर्य जयंती | इस प्रकार कल्पसूत्र स्थविरावली में मुनि संघों के विविध गणों, कुलों और शाखाओं के उल्लेख तो उपलब्ध होते हैं, किन्तु उसमें कहीं भी 'गच्छ' शब्द का उल्लेख नहीं हुआ है। अर्द्धमागधी आगम साहित्य के अंग- उपांग ग्रंथों में हमें कहीं भी 'गच्छ' शब्द का प्रयोग मुनियों के समूह के अर्थ में नहीं मिला है, अपितु उनमें सर्वत्र ‘गच्छ' शब्द का प्रयोग 'गमन' अर्थ में ही हुआ है। ईसा की पहली शताब्दी से लेकर पाँचवीं - छठी शताब्दी तक के मथुरा आदि स्थानों के जो अभिलेख उपलब्ध होते हैं उनमें भी कहीं भी 'गच्छ' शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है । वहाँ सर्वत्र गण, कुल, शाखा और अन्वय के ही उल्लेख पाये जाते हैं । दिगम्बर एवं यापनीय परंपरा के भी जो प्राचीन अभिलेख एवं ग्रंथ पाये जाते हैं; उनमें भी गण, कुल, शाखा एवं अन्वय के उल्लेख ही मिलते हैं । गच्छ के उल्लेख तो 9 वीं शताब्दी के बाद के ही मिलते हैं।' इस आधार पर हम निश्चित रुप से इतना तो कह ही सकते हैं कि 'गच्छ' शब्द का मुनियों के समूह अर्थ में प्रयोग छठीं शताब्दी के बाद ही कभी प्रारंभ हुआ है। अभिलेखीय साक्ष्य की दृष्टि से प्राचीनतम अभिलेख वि.सं. 1011 अर्थात् ईस्वी सन् 954 का उपलब्ध होता है जिसमें 'बृहद्गच्छ' का नामोल्लेख हुआ है । ' 1. 2. (क) जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2, लेख क्रमांक 143 (ख) प्रतिष्ठा लेख संग्रह, लेख क्रमांक 34, 38, 39, 133, 833 “संवत् 1011 वृहदगच्छीय श्री परमानन्दसूरि शिष्य श्री यक्षदेवसूरिभिः प्रतिष्ठित. " - लोढ़ा दौलतसिंह : श्री जैन प्रतिमा लेख संग्रह, लेख क्रमांक 331 ।
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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