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253 आर्य सुहस्ति के आर्य रोहणआदि बारह शिष्य हुए, उनमें काश्यप गोत्रीय आर्य रोहण से 'उद्देह' नामक गण हुआ। उस गण की भी चार शाखाएँ हुईं- (1)
औदुम्बरिका, (2) मासपूरिका, (3) मतिपत्रिका और (4) पूर्णपत्रिका। उद्देहगण की उपरोक्त चार शाखाओं के अतिरिक्त छ: कुल भी हुए (1) नागभूतिक, (2) सोमभूतिक, (3) आर्द्रगच्छ, (4) हस्तलीय, (5) नन्दीयऔर (6) पारिहासिक।
आर्य सुहस्ति के अन्य शिष्य स्थविर श्री गुप्त से चारणगण निकला। चारणगण की चार शाखाएँ हुई- (1) हरितमालाकारी, (2) शंकाशिया, (3) गवेधुका और (4) वज्रनागरी। चारणगण की चार शाखाओं के अतिरिक्त सात कुल भी हुए- (1) वस्त्रालय, (2) प्रीतिधार्मिक, (3) हालीय, (4) पुष्पमैत्रीय (5) मालीय, (6) आर्य चेटक और (7) कृष्णसह।
आर्य सुहस्ति के ही अन्य स्थविर भद्रयश से उडुवाटिकगण निकला, उसकी चार शाखाएँ हुई- (1) चम्पिका, (2) भद्रिका, (3) काकंदिका और (4) मेखलिका । उडुवाटिकगण की चार शाखाओं के अतिरिक्त तीन कुल हुए- (1) भद्रयशस्क, (2) भद्रगुप्तिक और (3) यशोभद्रिक।
___ आर्य सुहस्ति के अन्य शिष्य स्थविर कामर्द्धि से वेशवाटिकगण निकला, उसकी भी चार शाखाएँ हुई- (1) श्रावस्तिका, (2) राज्यपालिका, (3) अन्तरिजिका और (4) क्षेमलिज्जिका । वेशवाटिकगण के कुल भी चार हुए- (1) गणिक, (2) मेधिक, (3) कामर्द्धिक और (4) इन्द्रपुरक। ___आर्य सुहस्ति के ही एक अन्य शिष्य स्थविर तिष्यगुप्त से मानवगण निकला, उसकी चार शाखाएँ हुई- (1) काश्यपीयका, (2) गौतमीयका, (3) वशिष्टिका
और सौराष्टिका। मानवगण के तीन कुल भी हुए- (1) ऋषिगुप्तिय, (2) ऋषिदत्तिक और (3) अभिजयंत। आर्य सुहस्ति के ही दो अन्य शिष्यों सुस्थित और सुप्रतिबुद्ध से कोटिकगण निकला, उसकी भी चार शाखाएँ हुएं- (1) उच्चैनगिरी, (2) विद्याधरी, (3) वज्रीऔर (4) माध्यमिका। इस कोटिकगण के चार कुल थे- (1) ब्रह्मलीय, (2) वस्त्रलीय, (3) वाणिज्य तथा (4) प्रश्नवाहक। __स्थविर सुस्थित एवं सुप्रतिबुद्ध के पाँच शिष्य हुए, उनमें से स्थविर प्रियग्रन्थ से कोटिकगण की मध्यमाशाखा निकली। स्थविर विद्याधर गोपाल से विद्याधरी शाखा निकली। स्थविर आर्य शांति श्रेणिक से उच्चैनगिरी शाखा निकली। स्थविर आर्य