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________________ 247 होता है। इसका समय भी दो घटी अर्थात् 48 मिनट है। इस मुहूर्त की विशेषता यह है कि प्रारंभ में यह प्रमादी, उत्तरकाल में श्रमशील, विचारक और स्नेही होता है। इसके भी तीन भाग हैं- आदि, मध्य और अंत । आदिभाग शक्तिशाली, अध्यवसायी, कार्यकुशल और लोकप्रिय होता है। इस भाग में कार्य करने पर कार्य सफल होता है, किन्तु अध्यवसाय और परिश्रम की आवश्यकता पड़ती है। पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान एवं शांति पौष्टिक कार्यों के लिए यह ग्राह्य माना गया है। इसमें किये जाने पर उक्त कार्य प्रायः सफल होते हैं। यद्यपि कार्य के अंत होने पर विघ्न-बाधाएँ आती हुई दिखलाई पड़ती है, परंतु अध्यवसाय द्वारा कार्य सिद्ध होने में विलम्ब नहीं लगता है। ... चौथे मुहूर्त का द्वितीय भागभी आनंदसंज्ञक है। इसके 5 पलों में अमृत रहता है। जो व्यक्ति इसके अमृतभाग में कार्य करता है या अपने आत्मिक उत्थान में आगे बढ़ता है, वह निश्चय ही सफलता प्राप्त करता है। इसका तीसरा भाग, जिसे अंत भाग कहा जाता है, साधारण है। इसमें कार्य करने पर कार्य में विशेष सफलता नहीं मिलती है। अधिक परिश्रम करने पर भी फल अल्प मिलता है। जो व्यक्ति इस भाग में माङ्गलिक कार्य आरंभ करते हैं, उनके वे कार्य प्रायः असफल ही रहते हैं। ___ पाँचवाँ दैत्य नाम का मुहूर्त है जो कि सूर्योदय के तीन घण्टा 12 मिनट पश्चात् प्रारंभ होता है। यह शक्तिशाली, प्रमादी, क्रूर स्वभाव वाला और निद्रालु होता है। इसके आदिभागमें कार्य आरंभ करने पर विलंब से होता है, मध्य भाग में कार्य में नाना प्रकार के विघ्न आते हैं। चंचलता आदि रहती है तथा उग्र प्रकृति के कारण झगड़ेझंझट तथा अनेक प्रकार से बाधाएँ उत्पन्न होती हैं। अंत भाग अशुभ होते हुए भी शुभ फलदायक है। इसमें श्रमसाध्य कार्यों को प्रारंभ करना हितकारी माना गया है। जो व्यक्तिखर और तीक्ष्ण कार्यों को अथवा उपयोगों कलाओं के कार्यों को आरंभ करता है, उसे इन कार्यों में बहुत सफलता मिलती है। छठवाँ वैरोचन मुहूर्त सूर्योदय के चार घण्टे के उपरांत आरंभ होता है। इस मुहूर्त का स्वभाव अभिमानी, महत्वाकांक्षीऔर प्रगतिशील माना गया है। इसका आदिभाग सिद्धिदायक, मध्यभाग, हानिप्रद और अंत भाग सफलतादायक होता है। इस मुहूर्त में दान, अध्ययन, पूजा-पाठ के कार्य विशेष रूप से सफल होते हैं । जो व्यक्ति एकाग्रचित्त से इस मुहूर्त में भगवान का भजन, पूजन, स्मरण और गुणानुवाद करता है, वह अपने लौकिक और पारलौकिक सभी कार्यों में सफलता प्राप्त करता है। इस मुहूर्त
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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