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________________ 246 दूसरे श्वेत मुहूर्त्त का आरंभ सूर्योदय के दो घटी - 48 मिनट के उपरांत होता है। यह भी दो घटी तक अपना प्रभाव दिखलाता है । इसका आदि भाग साधारण, शक्तिहीन, पर मांगलिक कार्यों के लिए शुभ, नृत्य गायन में प्रवीण - आमोद-प्रमोद को रुचिकर समझने वाला एवं आह्लादकारी होता है । मध्यभाग इस मुहूर्त का शक्तिशाली, कठोर कार्य करने में समर्थ, दृढ़ स्वभाववाला, श्रमशील, दृढ़ अध्यवसायी एवं प्रेमिल स्वभाव का होता है। इस भाग में किये गये सभी प्रकार के सफल होते हैं । तीसरा मुहूर्त्त सूर्योदय के 1 घंटा 36 मिनट पश्चात् आरंभ होता है। यह भी दो घटी तक रहता है। यह मुहूर्त विशेष रूप से पश्चमी, अष्टमी और चतुर्दशी को अपना पूर्ण प्रभाव दिखलाता है । इसका स्वभाव मृदु, स्नेहशील, कर्त्तव्यपरायण और धर्मात्मा माना है । इसके भी तीन भाग हैं- आदि, मध्य और अंत । आदि भाग शुभ, सिद्धिदायक, मंगलकारक एवं कल्याणप्रद होता है। इसमें जिस कार्य का आरंभ किया जाता है, वह कार्य अवश्य सफल होता है । तल्लीनता और कार्य करने में रुचि विशेषतः जाग्रत होती है । विघ्न बाधाएँ उत्पन्न नहीं होती । तीसरे मुहूर्त का मध्यभाग सबल, विचारक, अनुरागी और परिश्रम से भागने वाला होता है। इसका स्वभाव उदासीन माना है। यद्यपि इसमें आरंभ किये जाने वाले कार्यों में नाना प्रकार की बाधाएँ उत्पन्न होती है, ऐसा प्रतीत होत है कि कार्य अधूरा ही रह जायेगा, फिर भी काम अंततोगत्वा पूरा हो ही जाता है । इस भाग का महत्व अध्ययन, अध्यापन एवं आराधना के लिए अधिक है। स्वाध्याय आरंभ करने के लिये यह भाग श्रेष्ठ माना गया है । जो व्यक्ति गणित के तीसरे मुहूर्त्त के मध्यभाग को निकाल कर उसी समय में विद्यारंभ करते हैं, वे विद्वान बन जाते हैं। यो तो इस समस्त मुहूर्त्त में सरस्वती का निवास रहता है, पर विशेष रूप से इस भाग में सरस्वती का निवास है । तीसरे मुहूर्त का अंतिम भाग व्यापार, अध्यवसाय, शिल्प आदि कार्यों के लिये प्रशस्त माना है। इस भाग का स्वभाव मिलनसार, लोकव्यवहारज्ञ और लोभी माना गया है इसी कारण व्यापार और बड़े-बड़े व्यवसायों के प्रारंभ करने के लिए इसे प्रशस्त बतलाया है । यह मुहूर्त्त स्थिर संज्ञक भी है, प्रतिष्ठा, गृहारम्भ, कूपारम्भ, जिनालयारम्भ, व्रतोपनयन आदि कार्य इस मुहूर्त्त में विधेय माने गये हैं । चौथा सारभट नाम का मुहूर्त्त सूर्योदय के दो घण्टा 36 मिनट के पश्चात् प्रारंभ
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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