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________________ 248 का उपयोग प्रधान रुप से धार्मिक कृत्यों में करना चाहिए। सातवाँ मुहूर्त वैश्वदेव नाम का है, इसका प्रारंभ सूर्यादय के चार घण्टा 48 मिनट के उपरांत होता है। यह मुहूर्त विशेष शुभ माना जाता है, परंतु कार्य करने में सफलता सूचक नहीं हैं। इस मुहूर्त का आदिभाग निकृष्ट, मध्य भाग साधारण और अंत भाग श्रेष्ठ होता है। - आठवाँ अभिजित् नाम का मुहूर्त । यह सर्वसिद्धिदायक माना गया है। इसका प्रारंभ सूर्योदय के 5 घण्टा 36 मिनट के उपरांत माना जाता है। इसका आधा भाग अर्थात् एक घटी प्रमाण काल समस्त कार्यों में अभूतपूर्व सफलता देने वाला होता है। अभिजित् रविवार, सोमवार आदि को भिन्न-भिन्न समय में पड़ता है। इसका कार्य साफल्य के लिये विशेष उपयोग है। प्रायः अभिजित् ठीक दोपहर को आता है, यही सामायिक करने का समय है। आत्मचिन्तन करने के लिए अभिजित् मुहूर्त का विधान ज्योतिष-ग्रंथों में अधिक उपलब्ध होता है। नौवाँ मुहूर्त रोहण नाम का है, इसका स्वभाव गंभीर, उदासीन और विचारक है। यह समस्त तिथि का शासक माना गया है । यद्यपि पाँचवाँ दैत्य मुहूर्त तिथि का अनुशासक होता है, परंतु कुछ आचार्यों ने इसी मुहूर्त को तिथि का प्रधान अंश माना है । इस मुहूर्त में कार्य करने पर कार्य सफल होता है। विघ्न-बाधाएँ भी नाना प्रकार की आती है, फिर भी किसी प्रकार से यह सफलता दिलाने वाला होता है। इसका आदिभागमध्यम, मध्यभाग, श्रेष्ठ और अंतिम भाग निकृष्ट होता है। ___ दसवाँ बल नामक मुहूर्त है। यह प्रकृति से निर्बुद्धि तथा सहयोग से बुद्धिमान माना जाता है। इसका आदिभागश्रेष्ठ, मध्यभाग साधारण और अंत भाग उत्तम होता है। - ग्यारहवाँ विजय नामक मुहूर्त है, यह समस्त कार्यों में अपने नाम के अनुसार विजयी होता है। बारहवाँ नैर्ऋत् नाम का मुहूर्त हैं, जो सभी कार्यों के लिए साधारण होता है। तेरहवाँ वरुण नाम का मुहूर्त है, जिसमें कार्य करने से धन व्यय तथा मानसिक परेशानी होती है।
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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