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________________ 241 5. ग्रहदिवसद्वार - वारों में रविवार, मंगलवार और शनिवार क्रूर माने गये हैं। इनमें शुभ कार्य करना प्रायः त्याज्य है । मतान्तर से रविवार ग्रहण भी किया गया है, किन्तु मंगलवार और शनिवार को सर्वथा त्याज्य बताया है । शुक्र, गुरु और बुधवार समस्त शुभ कार्यों में ग्राह्य माने गये हैं। सोमवार को मध्यम बताया है। राज्याभिषेक, नौकरी, मंत्र - सिद्धि, औषध निर्माण, विद्यारंभ, संग्राम, अलंङ्कार निर्माण, शिल्प निर्माण, पुण्यकृत्य, उत्सव, यान - निर्माण, सूतिका - स्नान आदि कार्य रविवार को करने से, कृषि, व्यापार, गान, चांदी - मोती का व्यापार, प्रतिष्ठा आदि कार्य सोमवार को करने से, क्रूर कार्य, खान खोदना, ऑपरेशन कराना, सूतिका स्नान आदि काम मंगल को करने से, अक्षरारम्भ, शिलान्यास, कर्णवेध, काव्य- निर्माण, प्रतिष्ठा, गृहारम्भ, गृह प्रवेश, सीमन्तोन्नयन, पुंसवन, जातकर्म, विवाह, स्तनपान, सूतिका स्नान, भूम्युपवेशन एवं अन्नप्राशन आदि मांगलिक कार्य गुरुवार को करने से, विद्यारम्भ, कर्णवेध, चूड़ाकरण, वाग्दान, विवाह, व्रतोपनयन, षोडश संस्कार आदि कार्य शुक्रवार को करने से एवं गृहप्रवेश, दीक्षारम्भ तथा अन्य क्रूर कार्य शनिवार को करने से सफल होते हैं । ' - - 6. मुहूर्तद्वार - व्रत तिथि निर्णय में कहा है कि- तीस मुहूर्तों में पंद्रह मुहूर्त दिन में और पंद्रह मुहूर्त रात में होते हैं। रौद्र, श्वेत, मैत्र, सारभट, दैत्य, वैरोचन, वैश्वदेव, अभिजित्, रोहण, बल, विजय, नैर्ऋत्य, वरुण, अर्यमन् और भाग्य ये मुहूर्त्त प्रत्येक तिथि में दिन को रहते हैं । 1. व्रततिथिनिर्णय, 85-86 रात्रि में सावित्र, धुर्य, दात्रक, यम, वायु, हुताशन, भानु, वैजयन्त, सिद्धार्थ, सिद्धसेन, विक्षोभ, योग्य, पुष्पदन्त, सुगन्धर्व और अरुण ये पंद्रह मुहूर्त्त रहते हैं। प्रत्येक मुहूर्त्त दोघटी प्रमाण काल तक रहता है। कुछ आचार्य दिन में पाँच मुहूर्त्त ही मानते है तथा कुछ छः मुहूर्त्त । दिन के पंद्रह मुहूर्तों में रौद्र, श्वेत, मैत्र, सारभट और दैत्य आदि का गुण और स्वभाव बतलाये हुए कहा गया है कि प्रथम रौद्र मुहूर्त, जो कि उदयकाल में दो घटी तक रहता है, खर और तीक्ष्ण कार्यों के लिए शुभ होता है। इस मुहूर्त्त में किसी विलक्षण, असाध्य और भयंकर कार्य को आरंभ करना चाहिए। इस मुहुर्त का आदि भाग शुभ, मध्य भाग साधारण और अंत भाग निकृष्ट होता है। इस मुहूर्त्त का स्वभाव उग्र, कार्य करने में प्रवीण, साहसी और वंचक बताया गया है।
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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