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________________ 219 2. जे. - आचार्यश्री जिनभद्रसूरि जैन ज्ञान भंडार की प्रति। यह भी ताड़पत्रीय है। 3.हं - श्री आत्माराम जैन ज्ञान मंदिर - बड़ोदा में सुरक्षित । मुनिश्री हंसराज जी म.सा. के हस्तलिखित ग्रंथ संग्रह की प्रति 4. पु. - श्री लालभाई दलपत भाई भारतीय संस्कृति विद्या मंदिर - अहमदाबाद सुरक्षित । मुनिश्री पुण्यविजयजी म.सा. के संग्रह के प्रति । 5. सा. - आगमोदय समिति - सूरत द्वारा 1927 में प्रकाशित और आचार्यश्री सागरानन्दजी सूरि द्वारा संपादित ग्रंथ । हमने उक्त क्रमांक 1 से 5 तक की इन पाण्डुलिपियों के पाठ भेद मुनि पुण्यविजयजी द्वारा सम्पादित पइण्णय सुत्ताइं नामक ग्रंथ के लिए हैं । इन पाण्डुलिपियों की विशेष जानकारी के लिए हम पाठकों से पइण्णय सुत्ताई ग्रंथ की प्रस्तावना के पृष्ठ 23-25 देखने की अनुशंसा करते हैं । गणिविद्या के कर्ता एवं उसका रचनाकाल : 1 गणिविद्या का प्रारंभ मंगलाचरण से होता है । उसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जिनभाषित प्रवचन शास्त्र में जिस प्रकार से ग्रह, नक्षत्र, मुहूर्त, कारण आदि नौ बलों की बलाबल विधि कही गई है उसी के आधार पर मैं इनका वर्णन करूंगा । इससे यह फलित होता है कि ग्रंथ का कर्ता जैन आगम साहित्य का अध्येता है और उसी ज्ञान के आधार पर वह अपने ग्रंथ की रचना करना चाहता है । प्रतिज्ञा वाक्य से भी यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रस्तुत कृति मात्र संकलन नहीं होकर किसी व्यक्ति विशेष की रचना है किन्तु संपूर्ण ग्रंथ में कहीं भी ग्रंथकर्ता ने अपना नामोल्लेख नहीं किया है। यह एक प्राचीन परंपरा रही है कि ग्रंथ रचना की प्रतिज्ञा का उल्लेख करके भी प्राचीनाचार्य अपने नाम का उल्लेख नहीं करते थे। क्योंकि वे यह मानते थे कि उनकी रचना का मूल आधार तो जिनवचन ही है अतः हम उसके कर्ता कैसे हो सकते हैं । दूसरे कर्ता के रूप में अपने नाम का उल्लेख नहीं करना ग्रंथकार की विनम्रता का परिचायक भी होता है । जैन परंपरा के प्राचीन स्तर के ग्रंथों में ग्रंथकर्ता के नाम का उल्लेख नहीं मिलता है। यद्यपि परंपरा के दशवैकालिक सूत्र के कर्ता आर्य स्वयंभू माने जाते हैं परंतु उन्होंने भी अपने नाम का प्रयोग नहीं किया है। छठी शताब्दी में हुए आचार्य कुन्दकुन्द ने भी अपने ग्रंथों का प्रारंभ प्रतिज्ञापूर्वक करके भी ग्रंथ के कर्ता के
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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