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इस प्रकार इसमें 27 प्रकीर्णक और 5 कुलकप्रकाशित है। इनमें चतुःशरण नामक दो प्रकीर्णक, आतुर प्रत्याख्यान के नाम के तीन प्रकीर्णक और आराधना के नाम से 7 प्रकीर्णक एवं 1 कुलक है। यदि आराधना, चतुःशरण और आतुरप्रत्याख्यान को एक-एक माना जाये तो कुल 18 प्रकीर्णक होते हैं। इन दो भागों में अप्रकाशितअंगविद्या, अजीवकल्प, सिद्धप्राभृत एवं जीवविभक्ति ये चार जोड़ने पर प्रकीर्णकों की कुल संख्या 22 होती है।
इन प्रकीर्णकों के नामों में से नन्दी एवं पाक्षिक सूत्र के उत्कालिक सूत्रों के वर्ग में (1) देवेन्द्रस्तव (2) तन्दुलवैचारिक (3) चन्द्रवेध्यक (4) गणिविद्या (5) मरणविभक्ति (6) मरणसमाधि (7) महाप्रत्याख्यान ये सात नाम पाये जाते हैं एवं कालिक सूत्रों के वर्ग में 1- ऋषिभाषित एवं 2 - द्वीपसागरप्रज्ञप्ति ये दो नाम पाये जाते हैं। इस प्रकार नन्दी एवं पाक्षिक सूत्र में नौ प्रकीर्णकों का उल्लेख मिलता है। अतः नन्दीसूत्र एवं पाक्षिक सूत्र में और दस प्रकीर्णकों की सभी सूचियों में गणिविद्या का उल्लेख होना इस बात का प्रमाण है कि यह आगम के रूप में मान्य एक प्राचीन ग्रंथ है। ___ यद्यपि आगमों की श्रृंखला में प्रकीर्णकों का स्थान द्वितीयक है किन्तु यदि हम भाषागत प्राचीनता और विषयवस्तु की दृष्टि से विचार करे तो कुछ प्रकीर्णक, आगमों की अपेक्षा भी प्राचीन एवं महत्वपूर्ण प्रतीत होते हैं। प्रकीर्णकों में ऋषिभाषित, तन्दुलवैचारिक, देवेन्द्रस्तव, चन्द्रवेध्यक आदि कुछ ऐसे प्रकीर्णक है जो उत्तराध्ययन एवंदशवैकालिक जैसे प्राचीन स्तर के आगमों की अपेक्षाभी प्राचीन हैं।'
गणिविद्या गणिविद्या प्रकीर्णक का सर्वप्रथम उल्लेख नंदिसूत्र एवं पाक्षिक सूत्र में मिलता है। नन्दिसूत्र चूर्णि में इसकी व्याख्या करते हुए लिखा गया है कि :
“सबाल वुड् ढाउलो गच्छो गणो, सो जस्स अत्थि.सो गणो, विज्ज त्ति णाणं, तं चजोइस-निमित्तगत्तं णातुंपसत्थेसु इमे कज्जे करेति, तंजहा-पव्वावणा (1)
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1. नन्दीसूत्र-मुनिमधुकर, पृ. 80-81। 2. ऋषिभाषित एक अध्ययन-प्रो.सागरमल जैन, प्राकृत भारतसंस्थानजयपुर।