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से जो विसंगति देखी जाती है अथवा जिनके कारण जैन परंपरा की अहिंसा भावना खंडित होती प्रतीत होती है, उन सबकी लौकिकमान्यता के रूप में संगतिपूर्ण व्याख्या की जासकती है।
हमारी दृष्टि में आध्यात्मप्रधान और नैतिक आदर्शों के प्रवक्ता तीर्थंकर महावीर का उन सबलौकिक मान्यताओं से बहुत अधिक संबंध नहीं रहा होगा, यह तो परवर्ती आचार्यों का ही प्रयत्न होगा कि उन्होंने जैन आगम साहित्य कोखगोल-भूगोल आदि विभिन्न लौकिक विषयों से समृद्ध करने के प्रयत्न में लौकिक मान्यताओं को भी जैन आगमों में समाविष्ट कर लिया, अन्यथा इन सब बातों का अध्यात्म एवं चरण-गुण प्रधान जैन धर्म से सीधा-सीधा कोई संबंध नहीं रहा था। देवेन्द्रस्तव' की यह विशिष्ट शैली हमें उन सब समस्याओं से बचा लेती है और खगोल-भूगोल संबंधी विवरणों में जो विसंगति परिलक्षित होती है उसके लिए तीर्थंकर की वाणी उत्तरदायी नहीं बनती है।
- पुनः आजभी मूर्तिपूजक श्वेताम्बर समाज में एक वर्ग जिसे 'त्रिस्तुतिक' (तीन थुई) के नाम से जाना जाता है, क्षेत्रपाल आदि देवों की स्तुति को षड्वश्यक की साधना में अनिवार्य नहीं मानता और उसे आगम विरुद्ध कहता है। शायद यही दृष्टि प्राचीनकाल में भी रही होगी और इसीलिए देवेन्द्रस्तव' को श्रावक के मुख से ही कहलवाया गया। देवेन्द्रस्तव' की यह शैली उसी युग में संभव थी जब अध्यात्म और नैतिकता प्रधान जैन धर्म में लौकिक मान्यताओं का प्रवेश तो हो रहा था, किन्तु उन्हें तीर्थंकर प्रणीत नहीं कहा जा रहा था। इस प्रकार भाषा-शैली की दृष्टि से इसकी विशेषताओं को देखते हुए इसे ईस्वी पूर्व प्रथम शताब्दी का ग्रंथ मानने में विद्वानों को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
यदि हम विषय-वस्तु की दृष्टि से देवेन्द्रस्तव' का काल निर्धारण करना चाहें तो हमें यह विचार करना होगा कि देवेन्द्रस्तव' की विषयवस्तु क्या है, वह किस काल की हो सकती है तथा वह किन-किन आगम ग्रंथों में पायी जाती है ? सर्वप्रथम यह तो स्पष्ट है कि देवेन्द्रस्तव' में भवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक इन चार प्रकार के देवों, उनके इन्दों, निवास-क्षेत्रों, भवनों, निवास क्षेत्र एवं भवनों के आकार-प्रकारों तथा इन देवों और इन्द्रों की आयु, शक्ति, ज्ञान-सामर्थ्य आदि का विवेचन किया गया है। साथ ही साथ ज्योतिष्क देवों की गति संबंधी चर्चा भी है जो सूर्यप्रज्ञप्ति के अनुरूप ही है। सूर्यप्रज्ञप्ति की ज्योतिष्क संबंधी मान्यताओं के आधार पर विद्वानों ने उसका