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________________ 14 आगमों का विवरण प्रस्तुत करने की शैली मुख्यतः उन आगमों में देखी जाती है जिनके रचयिता कोई स्थविर या आचार्य माने जाते हैं। नंदी जैसे परवर्ती अर्द्धमागधी आगम ग्रंथों में तथा शौरसेनी आगम साहित्य के ग्रंथों में मुख्यतया इस प्रकार की शैली परिलक्षित होती है। 'देवेन्द्रस्तव' की वर्णन शैली भी इसी प्रकार की है। किन्तु इस ग्रंथ की एक विशेषता यह है कि इसमें महावीर की स्तुति के पश्चात् समग्र विषय-व -वस्तु का विवेचन श्राविका की जिज्ञासा के समाधान के रूप में श्रावक द्वारा करवाया गया है। अतः इसमें जिज्ञासा समाधानपरक और स्तुतिपरक दोनों ही शैलियों का मिश्रण देखा जाता है। जिज्ञासा - शैली की दृष्टि से सम्भवतः यही एक मात्र ऐसा ग्रंथ है, जिसमें विषयवस्तु का विवरण तीर्थंकर के मुख से अथवा आर्य सुधर्मा या गौतम के मुख से न कहलवाकर श्रावक के मुख से कहलवाया गया है। वस्तुतः इसके पीछे एक रहस्य प्रतीत होता है । यद्यपि भगवती, सूर्य-प्रज्ञप्ति आदि में देवों से संबंधित विवरण महावीर श्रीमुख से ही कहलवाये गये । गौतम के पूछने पर महावीर ने कहा, ऐसा कह करके आर्य सुधर्मा, आर्य जम्बू को कहते हैं। तो फिरआखिर ऐसा क्यों हुआ कि 'देवेन्द्रस्तव' में यह विवरण एक श्रावक प्रस्तुत करता है ? हमारे विचार से चूंकि ‘देवेन्द्रस्तव' एक स्तुतिपरक ग्रंथ था अतः महावीर अपने श्रीमुख से अपनी स्तुति कैसे करते ? पुनः किसी काल-विशेष तक आध्यात्मिक साधना प्रधान श्रमण इस प्रकार देवों की स्तुति नहीं करते होंगे, अतः आचार्य ऋषिपालित ने यह सोचा होगा कि इसे हवा मुख से प्रस्तुत नहीं करवा करके श्रावक के मुख से ही प्रस्तुत करवाया जाये। पुनः जब ग्रंथ के आरंभ में ही देवेन्द्रों को तीर्थंकर की स्तुति करने वाला कह दिया गया तो फिर स्वयं तीर्थंकर अपने मुँह से अपनी स्तुति करने वाले का विवरण कैसे प्रस्तुत करते ? साथ ही 'देवेन्द्रस्तव' की इस शैली से ऐसा फलित होता है कि किसी समय तक खगोल-भूगोल संबंधी मान्यताओं को लौकिक मान्यता मान कर ही जैन परंपरा में स्थान दिया जाता रहा होगा। अतः इसका विवरण तीर्थंकर या आचार्य द्वारा न करवा करके श्रावक के द्वारा प्रस्तुत किया गया। यदि हम 'देवेन्द्रस्तव' की शैली के आधार पर इस तथ्य को स्वीकार कर लें कि ये लौकिक मान्यताएँ थी तो सूर्य - प्रज्ञप्ति आदि खगोल और ज्योतिष विषयक आगमों के कुछ पाठों को लेकर आधुनिक विज्ञान
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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