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पुनः प्रस्तुत ग्रंथ के कर्ता ऋषिपालित से भी कोटिकगण की आर्य ऋषिपालित शाखा निकलने का उल्लेख भी कल्पसूत्रकार करता है। अतः यह निश्चित हो जाता है कि आर्य ऋषिपालित एक प्रभावशालीआचार्य और ऐतिहासिकव्यक्ति है और हमारी दृष्टि में यही ऋषिपालित इस देविंदत्थओ के कर्ता है। कल्पसूत्र में उल्लिखित इन ऋषिपालित को 'देवेन्द्रस्तव' के कर्ता मानने में विद्वानों को एक ही आपत्ति हो सकती है, वह यह कि इस आधार पर 'देवेन्द्रस्तव' पर्याप्त प्राचीनकाल का ग्रंथ सिद्ध होगा। किन्तु ग्रंथ की विषयवस्तु एवं भाषा पर विचार करने पर हमें तो इसकी प्राचीनता पर संदेह नहीं रहता है। पुनः जब तक नन्दी के रचनाकाल के पूर्व अन्य किसी ऋषिपालित का उल्लेख उपलब्ध नहीं होता है तोहमारे सामने इसकेकर्ताकेरूप में कल्पसूत्रमें उल्लिखित ऋषिपालित को मानने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है। कल्पसूत्र की स्थविरावली के अनुसार महावीर से लेकर ऋषिपालित तककीगुरु परंपरा इस प्रकार से निश्चित होती है -
श्रमण भगवान महावीर
आर्य सुधर्मा आर्य जम्बू आर्य प्रभव आर्य स्वयंभू
आर्य यशोभद्र आर्य भैद्रबाहु आर्य सम्भूतिविजय
स्थूलिभद्र
आर्य महागिरि · आर्य सुहस्ति
सुप्रतिबुद्ध (आदि अन्य दस शिष्य)
सुस्थित आर्य इन्द्रदिन्न
शांतिसेन ऋषिपालित