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का संक्षिप्त निर्देश तो किया है, किन्तु उन्होंने इसके कर्ता के संबंध में विचार करने का कोई प्रयास ही नहीं किया है। अतः यह दायित्व अब हमारे ऊपर ही रह जाता है कि इसके कर्ता के संबंध में थोड़ागंभीरतापूर्वक विचार करें। __ नंदीसूत्र और मूलाचार में देविंदत्थओं काउल्लेख होने से इतना तो निश्चित है कि यहग्रंथ ईसा की पाँचवी शताब्दी में अस्तित्व में आगयाथा, अतः इसके कर्ता वीरभद्र किसी भी स्थिति में नहीं हो सकते, क्योंकि आगमवेत्ता मुनिश्री पुण्यविजयजी ने “पइण्णय सुत्ताई" के प्रारंभ में अपने संक्षिप्त वक्तव्य में वीरभ्रद का समय विक्रम सं. 1008 या 1078 निश्चित् किया है। मूलग्रंथ में वीरभद्र के नाम का स्पष्ट उल्लेख नहीं होने से तथा वीरभद्र के पर्याप्त परवर्ती काल का होने से यह निश्चित है कि इस प्रकीर्णक के कर्ता वीरभद्र नहीं है। चूंकि ग्रंथ की मूल गाथाओं में कर्ता के रूप में ऋषिपालित कास्पष्ट उल्लेख है। अतः इसकेकर्ता ऋषिपालित ही है अन्यकोई नहीं।
अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि देवेन्द्रस्तव' के कर्ता ऋषिपालित कौन थे? और कब हुए ? यद्यपि नन्दीसूत्र की स्थविरावली एवं श्वेताम्बर परंपरा की कुछ पट्टालियों में ऋषिपालित नाम के आचार्य का उल्लेख हमें नहीं मिला है, किन्तु खोज करते-करते हमें ऋषिपालित का उल्लेख कल्पसूत्र की स्थविरावली में प्राप्त हो गया। कल्पसूत्र की स्थविरा- वली के अनुसार ऋषिपालित आर्य शांतिसेन के शिष्यथे। मात्र यही नहीं कल्पसूत्र की स्थविरावली की गुरु परंपरा का भी उल्लेख है। ऋषिपालित के गुरुशांतिसेन और शांतिसेन के गुरु इन्द्रदिन्नथे। इन्हीं इन्द्रदिन्न के गुरु आर्य सुस्थित से 'कोटिक' नामक गण निकला था। इसी ‘कोटिक' गण में आर्य शांतिसेन से उच्चनागरी शाखा निकली। ज्ञातव्य है कि इसी उच्चनागरी शाखा में आगे चलकर तत्वार्थ के कर्ता उमास्वाति हुए हैं।
................................ 1. (क) जैन साहित्य कावृहद इतिहास - भाग 2 -डॉ. मोहनलाल मेहता-पृ. 360
(ख) श्रीजैन प्रवचन किरणावली-विजयपद्मसूरि-पृ.433 2. पइण्णयसुत्ताई-मुनिपुण्यविजयजी- प्रस्तावना-पृ. 19 3. देवेन्द्रस्तव - गाथा 309-310 4. “थेरेहितोणअज्जइसिपालिएहिंतो एत्थणं अज्ज
इसिपालिया साहा निग्गया" कल्पसूत्र - म. विनयसागरपृ. 304