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(25) जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमें णंरुयगवरे पव्वते
अट्ठकूडापण्णत्ता, तंजहासोत्थिते य अमोहे य, हिमवं मंदरे तहा। रुअगेरुयगुत्तमे चंदे, अट्ठमेयसुदंसणे॥
_(स्थानांग सूत्र, 8/97)* (26) जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणंरुअगवरे पव्वते
अट्ठकूडापण्णत्ता, तंजहारयण-रयणुच्चएय, सव्वरयणरयणसंचएचेव। विजयेयवेजयंते जयंते अपराजिते॥
(स्थानांग सूत्र, 8/98)* (27) (i)तत्थणंअट्ठदिसाकुमारिमहत्तरियाओमहिड्ढियाओजाव
पलिओवमद्वितीयाओ परिवसंति, तंजहाणंदुत्तरायणंदा, आणंदाणंदिवद्धणा। विजयायवेजयंती, जयंतीअपराजिया॥
(स्थानांग सूत्र, 8/95)* (ii) नंदुत्तरा 1 यनंदा 2 आणंदा 3 नंदिवद्धणा 4 चेव।
विजया 5 यवेजयंती 6 जयंति 7 अवराइअट्ठमिया 8॥ एयाओरूयगनगेपुव्वे कूडे वसंति अमरीओ। आदंसगहत्थाओ जणणीणं ठंतिपुव्वेणं॥
(तित्थोगाली प्रकीर्णक, गाथा 153-154) (28) (i)तत्थणंअट्ठदिसाकुमारिमहत्तरियाओमहिड्ढियाओजाव
पलिओवमद्वितीयाओपरिवसंति, तंजहासमाहारासुपतिण्णा, सुप्पबुद्धा जसोहरा। लच्छिवंतीसेसवती, चित्तगुत्ता वसुंधरा॥
(स्थानांग सूत्र, 8/96)* (ii) रुयगे दाहिणकूडे अट्ठसमाहारा 1 सुप्पइण्णा 2 य।
तत्तोय सुप्पबुद्धा 3 जसोधरा 4 चेवलच्छिमई 5॥ सेसवति 6 चित्तगुत्ता 7 जसो (वसुंधरा) 8 चेवगहियभिंगारा।। देवीण दाहिणेणं चिट्ठति पगायमाणीओ॥
(तित्थोगाली प्रकीर्णक, गाथा 155-156)
* द्वीपसागर प्रज्ञप्ति में इन शिखरोंकोरुचक पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित माना हैं।