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________________ 167 ( 20 ) तत्थ णं जे से दाहिणपच्चत्थिमिल्ले रतिकरगपव्वते, तस्स णं चउद्दिसिं स कस्स देविंदस्स देवरण्णो चउण्हमग्गमहिसीणं जंबुद्दीवपमाणमेत्ताओ चतारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहाभूता, भूतवडेंसा, गोथूभा, सुदंसणा । अमलाए, अच्छराए वमिया रोहिणीए । ( स्थानांगसूत्र, 4 / 2 / 347 ) ( 21 ) तत्थ णं जे से उत्तरपच्चत्थिमिल्ले रतिकरगपव्वते, तस्स णं चउद्दिसिमीसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो चउण्हमग्गमहिसीणं जंबुद्दीवप्पमाणमेत्ताओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहारयणा, रतणुच्चया, सव्वरतणा, रतणसंचया । वसूए, वसुगुत्ताए, वसुमित्ताए, वसुंधरा । (स्थानांगसूत्र, 4/2/348 ) (22) तत्थ णं जे से उत्तरपुरत्थिमिल्ले रतिकरगपव्वते, तस्स णं चउद्दिसिं ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो चउण्हमग्गमहिसीणं जंबुद्दीवपमाणाओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं जहाणंदुत्तरा, गंदा, उत्तरकुरा, देवकुरा । कण्हाए, कण्हराईए, रामाए, रामरक्खियाए । ( स्थानांगसूत्र, 4/2/345 ) (23) जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं रुयगवरे पव्वते अट्ठ कूडा पण्णत्ता, तं जहा रिट्ठे तवणिज्ज कंचण, रयत दिसासोत्थिते पलंबे य। अंजणे अंजणपुलए, रुयगस्स पुरत्थिमे कूडा ॥ ( स्थानांगसूत्र, 8/95) (24) जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं रुयगवरे पव्वते अट्ठ कूडा पप्णत्ता, तं जहा कण कंच परमे, णलिणे ससि दिवायरे चेव । वेसमणे वेरुलिए, रुयगस्स उ दाहिणे कूडा ॥ ( स्थानांगसूत्र, 8/96) * * द्वीपसागर प्रज्ञप्ति में इन शिखरों को रुचक पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित माना है ।
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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