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________________ 157 तिगिच्छि पर्वत की दक्षिण दिशा की ओर चमरचंचा राजधानी कही गई है। इस राजधानी का विस्तार एक लाख योजन तथा परिधि तीन लाख योजन मानी गई है। साथ ही यह भी माना गया है कि यह राजधानी भीतर से चौरस और बाहर से वर्तुलाकार है । आगे की गाथाओं में चमरचंचा राजधानी के स्वर्णमय प्राकारों दरवाजों, राजधानी के प्रवेश मार्गों तथा देव विमानों का विस्तार परिमाण उल्लिखित है (174-186)। ग्रंथ में चमरचंचा राजधानी के प्रसाद की पूर्व - उत्तर दिशा में सुधर्मासभा मानी गई है। उसके बाद चैत्यगृह, उपपातसभा, हद, अभिषेक सभा, अलंकार सभा और व्यवसाय सभा का वर्णन किया गया है (187-188)। सुधर्मा सभा की तीन दिशाओं में में आठ योजन ऊँचे तथा चार योजन चौड़े तीन द्वार माने गये हैं । उन द्वारों के आगे मुखमण्डप, उनमें प्रेक्षागृह और प्रेक्षागृहों में अक्षवाटक आसन होना माना गया है। प्रेक्षागृहों के आगे स्तूप तथा उन स्तूपों की चारों दिशाओं में एक-एक पीठिका है। प्रत्येक पीठिका पर एक-एक जिनप्रतिमा मानी गई है। स्तूपों के आगे की पीठिकाओं पर चैत्य वृक्ष, चैत्य वृक्षों के आगे मणिमय पीठिकाएँ, उन पीठिकाओं के ऊपर महेन्द्र ध्वज तथा उनके आगे नंदा पुष्करिणियाँ मानी गई हैं। तथा यह कहा गया है कि यही वर्णन जिन मंदिरों तथा शेष बची हुई सभाओं का भी है (189-195)। किन्तु जो कुछ भिन्नता है उसकी आगे की गाथाओं में कहा गया है। बहुमध्य भाग में चबूतरा, चबूतरे पर मानवक चैत्य स्तम्भ, चैत्य स्तम्भ पर फलकें, फलकों पर खूटियाँ, खूटियों पर लटके हुए वज्रमय गीकें, सीकों में डिब्बे तथा डिब्बों में जिन भगवान की अस्थियाँ मानी गई हैं (196-197 ) । मानवक चैत्य स्तंभ की पूर्व दिशा में असन, पश्चिम दिशा में शय्या, शय्या की उत्तर दिशा में इन्द्रध्वज तथा इन्द्रध्वज की पश्चिम दिशा में चौप्पाल नामक शस्त्र भंडार माना गया है और कहा है कि वहाँ स्फटिक मणियों एवं शस्त्रों का खजाना रखा हुआ है (198-199) | ग्रंथ में जिनमंदिर और जिनप्रतिमाओं का विशेष विवरण उपलब्ध है । जिनमंदिर में जिनदेव की एक सौ आठ प्रतिमाओं, प्रत्येक प्रतिमा के आगे एक-एक घण्टा तथा प्रत्येक प्रतिमा के दोनों पार्श्व में दो-दो चंवरधारी प्रतिमाएँ मानी गई हैं। शेष सभाओं में भी पीठिका, आसन, शय्या, मुखमण्डप, प्रेक्षागृह, ह्रद, स्तूप, चैत्य स्तंभ ध्वज एवं चैत्य वृक्षों आदि का यही वर्णन निरुपित किया गया है (200-206)।
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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