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158 ग्रंथ के अनुसार चमरचंचा राजधानी की उत्तर दिशा में अरुणोदक समुद्र में पाँच आवास हैं। आगे सोमनसा, सुसीमा तथा सोम-यमा नामक तीन राजधानियाँ और उनका परिमाण बतलाया गया है। यह भी कहा गयाहै कि वहाँ वरुणदेव के चौदह हजार तथा नलदेव के सोलह हजार आवास हैं । इन राजधानियों के बाहरी वर्तुल पर सैनिकों
और अंगरक्षकों के आवास माने गये हैं। पुनः अरुण समुद्र में उत्तर दिशा की ओर भी सोमनसा, सुसीमा और सोम-यमा-ये तीनों राजधानियाँ मानी गई हैं, अंतर यह है कि यहाँ स्थित इन राजधानियों का विस्तार परिमाण उन राजधनियों से दो हजार योजन अधिक माना गया है। यहाँ वरुणदेव और नलदेव के आवासों की चर्चा करते हुए उनके भीदो-दो हजार आवास अधिक माने गए हैं, जो विचारणीय हैं (207-218)।
जम्बूद्वीप में दो, मानुषोत्तर पर्वत में चार तथा अरुण समुद्र में देवों के छः आवास माने गये हैं तथा कहा गया है कि उन आवासों में ही उन देवों की उत्पत्ति होती है। असुरकुमारों, नागकुमारों एवं उदधिकुमारों के आवास अरुण समुद्र में माने गये हैं
और उन्हीं में उनकी उत्पत्ति होना माना गया है। इसी प्रकार द्वीपकुमारों, दिशाकुमारों, - अग्निकुमारों तथा स्तनितकुमारों के आवास अरुण द्वीप में माने गए हैं और यह कहा गया है कि उन्हीं में उनकी उत्पत्ति होती है (221-223)।
ग्रंथ की अंतिम दो गाथाओं में चन्द्र-सूर्यों की संख्या का निरुपण करते हुए कहा गया है कि पुष्करवर द्वीपके ऊपर एक सौ चौंवालीस चन्द्र और एक सौ चौंवालीस सूर्यों की पंक्तियाँ हैं। इसके आगे की द्वीप-समुद्रों में चन्द्र-सूर्यों की पंक्तियों में चार गुणा वृद्धि होती है। ग्रंथ का समापन यह कहकर किया गया है कि जो द्वीप और समुद्र जितने लाख योजन विस्तार वाला होता है वहीं उतनी ही चन्द्र और सूर्यों की पंक्तियाँ होती हैं। (224-225)।