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________________ 152 जहाँ तक इस ग्रंथ की विषयवस्तु का प्रश्न है वह भी अधिकांश रूप से स्थानांगसूत्र, सूर्यप्रज्ञप्ति, जीवाजीवाभिगमसूत्र तथा राजप्रश्नीय सूत्र आदिआगम ग्रंथों में मिलती है। अतः यह ग्रंथ इन ग्रंथों का समकालीन या इनसे किंचित् परवर्ती होना चाहिए। उल्लेखनीय है कि गद्य आगमों की विषयवस्तु को सरलता पूर्वक याद करने की दृष्टि से पद्य रूप में संक्षिप्त संग्रहणी गाथाएँ बनाई गई थी। किन्तु संग्रहणी गाथाएँ भी लगभग ईस्वी. सन् की प्रथम शताब्दी में बनना प्रारंभ हो चुकी थीं। द्वीपसागरप्रज्ञप्ति के नाम के साथ संग्रहणी गाथाएँ' शब्द जुड़ा हुआ है। इससे ऐसा लगता है कि आगमों में द्वीप-समुद्रों संबंधी जो विवरण थे, उनके आधार पर संग्रहणी गाथाएँ बनी और उन गाथाओं को संकलित कर इस ग्रंथ का निर्माण किया गया होगा। इस स्थिति में भी इस ग्रंथ का रचनाकाल ई. सन् प्रथम शताब्दी से पाँचवीं शती के मध्य ही निर्धारित होता है। ज्ञातव्य है कि वर्तमान श्वेताम्बर मान्य आगमों में उनके संपादन के समय अनेक संग्रहणी गाथाएँ डाल दी गई है। पुनः प्रस्तुत ग्रंथ में जिन मंदिरों और जिनप्रतिमाओं का सुव्यवस्थित उल्लेख प्राप्त होता है। जिन प्रतिमाओं के निर्माण के प्राचीनतम उल्लेख हमें नन्दों के शासनकाल ई.पू. 4थी शती से ही मिलने लगते हैं। सम्राट खारवेल ने अपने हत्यीगुम्फा अभिलेख में यह सूचित किया है कि वह नन्दराजा द्वारा ले जाई गई कर्लिंगजिन की प्रतिमा को वापस लाया था।' मौर्यकाल (ई.पू. 3री शती) की तो जिनप्रतिमाएँ भी आज मिलती हैं। ईस्वी सन् प्रथम-द्वितीय शताब्दी से तो मथुरा में निर्मित जिन मंदिरों और उनमें स्थापित जिनप्रतिमाओं के पुरातात्विक अवशेष मिलने लगते हैं। अतः जिनमंदिरों और जिनप्रतिमाओं के उल्लेखों के आधार पर भी यह ग्रंथ ईस्वी सन् की प्रथम-द्वितीय शताब्दी के आसपास का प्रतीत होता है। इन उपलब्ध सभी प्रमाणों के आधार पर निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि द्वीपसागरप्रज्ञप्ति का रचनाकाल ईस्वी सन् की द्वितीय शताब्दी से पंचमशताब्दी के मध्य कहीं रहा है। द्वीपसागर प्रज्ञप्ति की विषयवस्तु द्वीपसागर प्रज्ञप्ति में कुल 225 गाथाएँ हैं। ये सभी गाथाएँ मध्यलोक में मनुष्य क्षेत्र अर्थात् ढाई-द्वीपके आगेकेद्वीप एवंसागरों की संरचनाको प्रकट करती हैं। 1.तिवारी, मारुतिनन्दनप्रसाद-जैन प्रतिमाविज्ञान, पृष्ठ 17।
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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