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________________ 153 ग्रंथ में निम्न विवरण उपलब्ध होता है ग्रंथ के प्रारंभ में किसी प्रकार का मंगल अभिधेय अथवा किसी की स्तुति आदि नहीं करके ग्रंथकर्त्ता ने सीधे विषयवस्तु का ही स्पर्श किया है। इस ग्रंथ की अपनी विशेषता है। ग्रंथ का प्रारंभ मानुषोत्तर पर्वत के विवरण से किया गया है । मानुषोत्तर पर्वत के रूप को बतलाते हुए इसकी लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई, जमीन में गहराई तथा इसके ऊपर विभिन्न दिशा - विदिशाओं में स्थित शिखरों के नाम एवं विस्तार परिमाण का . विवेचन किया गया है। (1-18)। ग्रंथ का प्रारंभ मानुषोत्तर पर्वत से होने से ऐसा प्रतीत होता है कि कहीं इस ग्रंथ का पूर्व अंश विलुप्त तो नहीं हो गया है ? क्योंकि यदि ग्रंथकार को मध्यलोक का संपूर्ण विवरण प्रस्तुत करना इष्ट होता तो उसे सर्वप्रथम जम्बूद्वीप फिर लवण समुद्र तत्पश्चात् धातकीखण्ड फिर कालोदधि समुद्र और उसके बाद पुष्करवर द्वीप का उल्लेख करने के पश्चात् ही मानुषोत्तर पर्वत की चर्चा करनी चाहिए थी। किन्तु ऐसा नहीं करके लेखक ने मानुषोत्तर पर्वत की चर्चा से ही अपने ग्रंथ को प्रारंभ किया है। संभवतः इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि जम्बूद्वीप और मनुष्य क्षेत्र का विवरण स्थानांगसूत्र, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, व्याख्याप्रज्ञप्ति तथा जीवाजीवाभिगम आदि अन्य आगम ग्रंथों में होने से ग्रंथकार ने मानुषोत्तर पर्वत से ही अपने ग्रंथ का प्रारंभ किया है । ज्ञातव्य है कि मानुषोत्तर पर्वत के आगे के द्वीप - सागरों का विवरण स्थानांगसूत्र एवं जीवाजीवाभिगम आदि में भी उपलब्ध होता है । ग्रंथ में नलिनोदक सागर, सुरारस सागर, क्षीरजलसागर, घृतसागर तथा क्षोदरसागर में गोतार्थ से रहित विशेष क्षेत्रों का तथा नन्दीश्वर द्वीप का विस्तार परिमाण निरुपित है ( 19-25) 1 अंजन पर्वत और उसके ऊपर स्थित जिन मंदिरों का वर्णन करते हुए अंजन पर्वतों की ऊँचाई, जमीन में गहराई, अधोभाग, मध्यभाग तथा शिखर - तल पर उसकी परिधि और विस्तार बतलाया गया है साथ ही यह भी कहा गया है कि सुंदर भौरों, काजल और अंजन धातु के समान कृष्णवर्ण वाले वे अंजन पर्वत गगनतल को छूते हुए शोभायमान है (26-37)। उन प्रत्येक अंजन पर्वत के शिखर - तल पर गगनचुम्बी जिन मंदिर कहे गये हैं, जिनमन्दिरों की लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई का परिमाण बतलाने के साथ यह भी
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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