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कि सूर्यप्रज्ञप्ति और चन्द्रप्रज्ञप्ति को व्याख्याप्रज्ञप्ति के साथ जोड़ा गया है। इससे यह अनुमान होता है कि एक समय श्वेताम्बर और यापनीय परंपराओं में पाँचों प्रज्ञप्तियों को एक ही वर्ग के अंतर्गत रखा जाता था। दिगम्बर परंपरा द्वाराधवला टीका में परिकर्म के पाँच विभागों में इन पाँचों प्रज्ञप्तियों की गणना करने का भी यही प्रयोजन प्रतीत होता है। स्थानांगसूत्र में जो अंगबाह्य चार प्रज्ञप्तियों का उल्लेख हुआ है वहाँ परिकर्म में उल्लिखित पाँचों नामों में से व्याख्याप्रज्ञप्ति को छोड़कर शेष चार नामों को स्वीकृत किया गया है। संभवतः स्थानांगसूत्र के रचनाकार ने वहाँ व्याख्याप्रज्ञप्ति को इसलिए स्वीकृत नहीं किया कि उस समय तक व्याख्याप्रज्ञप्ति को एक स्वतंत्र अंग आगम के रूप में मान्य कर लिया गया था । यद्यपि वह यह मानता है कि पाँचवीं प्रज्ञप्ति व्याख्याप्रज्ञप्ति है।
.. परिकर्म के इस समग्र वर्गीकरण के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि श्वेताम्बर परंपरा ने जो पाँच प्रज्ञप्तियाँ मानी थीं, दिगम्बर परंपरा ने उन्हें ही परिकर्म के पाँच विभाग माना है। दिगम्बर परंपरा में द्वीपसागरप्रज्ञप्ति नाम का आज कोई स्वतंत्र ग्रंथ उपलब्ध नहीं होता है। षट्खण्डागम की धवला का उल्लेख भी मात्र अनुश्रुति पर आधारित है। जिस प्रकार दिगम्बर परंपरा में विशेष रूप से तत्वार्थ की दिगम्बर टीकाओं में उत्तराध्ययन, दशवैकालिक आदि को अंगबाह्य के रूप में अनुश्रुति के आधार ही मान्य किया जाता रहा है उसी प्रकार द्वीपसागरप्रज्ञप्ति को भी अनुश्रुति के आधार पर ही मान्य किया गया है।
निर्ग्रन्थ संघ की अचेलधारा की यापनीय एवं दिगम्बर परंपराओं में मध्यलोक का विवरण देने वाले जो ग्रंथ मान्य रहे हैं उनमें लोक विभाग (प्राकृत), तिलोयपण्णति, त्रिलोकसार एवं लोकविभाग (संस्कृत) प्रमुख हैं, इसमें भी प्राकृत भाषा में लिखित लोकविभाग नामक प्राचीन ग्रंथ, जिसके आधार पर संस्कृत भाषा में उपलब्ध लोकविभाग की रचना हुई है, वर्तमान में उपलब्ध नहीं है । यद्यपि तिलोयपण्णत्ति में उस ग्रंथ का अनेक बार उल्लेख हुआ है । पुनः संस्कृत
लोकविभागकार ने तो स्वयं ही यह स्वीकार किया है कि मैंने लोकविभाग का भाषागत परिवर्तन करे यह ग्रंथ तैयार किया है। इससे लगभग 13वीं शताब्दी में इस ग्रंथ के अस्तित्व का प्रमाण मिलता है। संभव है संस्कृत में लोकविभाग की रचना के पश्चात् अथवा यापनीय परंपरा के समाप्त हो जाने से यह विषयवस्तु दिगम्बर परंपरा