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________________ 9 1 को प्रथम और महावीर को अंतिम तीर्थंकर मानकर प्रथम भाषा में ही वंदन किया गया है । अत: यह स्पष्ट है कि ग्रंथकार के समक्ष चौबीस तीर्थंकरों की अवधारणा उपस्थित थी, किन्तु हमें यह भी स्मरण रखना चाहिए कि ऋषभ को प्रथम और महावीर को अंतिम तीर्थंकर मानने मात्र से चौबीस की अवधारणा का समावेश नहीं हो जाता । उत्तराध्ययन में भी महावीर को अंतिम तीर्थंकर के रूप में माना गया है, लेकिन उसमें कहीं भी स्पष्ट रूप से चौबीस की संख्या का निर्देश नहीं है । इस प्रकार स्तुतिपरक साहित्य के विकास क्रम की दृष्टि से 'देवेन्द्रस्तव' पर्याप्त प्राचीन स्तर का ग्रंथ सिद्ध होता है। पुन 'देवेन्द्रस्तव' को “देवेन्द्रो का स्तव " यदि इस रूप में माना जाय तो यह केवल उसी अर्थ में स्तवन है कि यह उनकी विशेषताओं का विवरण प्रस्तुत करता है । यद्यपि इसमें इन्द्रों की सामर्थ्य आदि का अतिशयपूर्ण वर्णन है, फिर भी इसमें स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि देवताओं की इस समस्त ऋद्धि की अपेक्षा भी तीर्थंकरों की ऋद्धि अनंतानंतगुण अधिक है।' इससे ऐसा लगता है कि यह ग्रंथ यद्यपि देवेन्द्रों का विवरण प्रस्तुत करता है, किन्तु उसका मूल लक्ष्य तो तीर्थंकर की महत्ता को स्थापित करना और उनकी स्तुति करना ही है । नामकरण की सार्थकता का प्रश्न यद्यपि नंदी, पाक्षिक-सूत्र आदि में इसका उल्लेख देवेन्द्रस्तव (देविदत्थओ) के रूप में पाया जाता है, किन्तु यदि हम इसके वर्णित विषय का गंभीरतापूर्वक अध्ययन करें तो ऐसा लगता है कि यह 'देवेन्द्रस्तव' के स्थान पर तीर्थंकर - स्तव ही है क्योंकि इसकी 310वीं गाथा में ऋषिपालित को 'देविंदथयकारस्स वीरस्स' कहा गया है । मूलाचार में तो इसका 'थुदी' के रूप में ही उल्लेख है। यद्यपि इस देवेन्द्रस्तव में देवेन्द्रों का विस्तार से विवरण है, किन्तु उसमें एक भी गाथा ऐसी नहीं है, जिसमें देवेन्द्रों की स्तुति की गयी हो । अतः देवेन्द्रस्तव की व्याख्या करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि 66 1. “ अमरनरवंदिए वंदिऊण उसभाइये जिणवरिंदे वीरवर पच्छिमंते तेलोक्कगुरु गुणाइन्ने" - देवेन्द्रस्तव गाथा - 1 2. सुरगणइड्ढि समग्गा सव्वद्धापिंडिया अणंतगुणा । न विपावे जिणइड्डिणंतेहिं वि वग्गवग्गूहि - देवेन्द्रस्तव गाथा - 307
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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