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________________ 105 तृणों की शय्या ही समाधिमरण का कारण है और न प्रासुक भूमि ही, अपितु जिसका मन विशुद्ध होता है, दूसरे शब्दों में कहें तो जिसने चतुर्विध कषायों पर विजय प्राप्त कर ली हो, वहीं आत्मासंस्तारक होती है (96)। साधक जिस एक पद से धर्म मार्ग में प्रविष्ट होता है उस पद को सर्वाधिक महत्व दिया गया है और कहा है कि साधक को चाहिए कि वह जीवन के अंतिम समय तकभी उस पद का परित्याग नहीं करे (101-106)। ग्रंथ में जिनेन्द्र देवों द्वारा प्ररुपित धर्म को कल्याणकारी बतलाया है तथा कहा है कि मन, वचन एवं काया से इस पर श्रद्धा रखनी चाहिए क्योंकि यही निर्वाण प्राप्ति का मार्ग है (107)। आगे की गाथाओं में विविध प्रकार के त्यागों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि जो मन से चिन्तन करने योग्य नहीं हैं, वचन से कहने योग्य नहीं है तथा शरीर से जो करने योग्य नहीं हैं, उन सभी निषिद्ध कर्मों का साधक त्रिविध रूप से त्याग करे (108-110)। अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु - इन पांच पदों को पूजनीय माना गया है तथा कहा है कि इनका स्मरण करके व्यक्ति अपने पाप कर्मों का त्याग करे (114-120)। वेदना विषयक चर्चा करते हुए कहा है कि यदि मुनि आलम्बन करता है तो उसे दुःख प्राप्त होता है। समस्त प्राणियों को समभावपूर्वक वेदना सहन करने का उपदेश दिया गया है (121-122)। ग्रंथ में जिनकल्पी मुनि के एकाकीविहार को जिनोपदिष्ट और विद्वत्जनों द्वारा प्रशंसनीय बतलाया है तथा जिनकल्पियों द्वारा सेवित अभ्युद्यत मरणको प्रशंसनीय कहा है (126-127)। साधक के लिए कहा है कि वह चार कषाय, तीन गारव, पाँचों इन्द्रियों के विषय में तथापरीषहों का विनाश करके आराधनारूपीपताकाको फहराए (134)। __संसार समुद्र से पार होने और कर्मों को क्षय करने का उपदेश देते हुए कहा गया है कि हे साधक ! यदि तू संसाररूपी महासागर से पार होने की इच्छा करता है तो यह विचार मत कर कि “मैं चिरकाल तक जीवित रहूँ अथवाशीघ्र की मर जाऊँ।" अपितु यह विचार कर कि ज्ञान, दर्शन, चारित्र और जिनवचन के प्रति सजग रहने पर ही मुक्ति संभव है (135-136)। उपाचार्य श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री ने अपने ग्रंथ जैन आगम साहित्य मनन और
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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