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________________ 104 दुःखदायक बतलाया है तथा इनका त्याग करने की प्रेरणा दी गई है (51-60)। साथ ही क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष और तृष्णा को त्यागने तथा महाव्रतों का पालन करने का उपदेश है (61-70)। ____ आगे की गाथाओं में षट्लेश्याओं और ध्यान से संबंधित विवरण है, यहाँ कहा गया है कि कृष्ण, नील और कपोत लेश्या तथा आर्त और रौद्र ध्यान- ये सभी त्यागने योग्य हैं, किन्तु तेजो, पद्म और शुक्ल लेश्या तथा धर्म और शुक्ल ध्यान-ये अपनाने योग्य हैं । षट्लेश्याओं और ध्यान का विवरण स्थानांग', समवायांग', उत्तराध्ययन' आदिआगम ग्रंथों में भी मिलता है (71-72)। त्रिगुप्ति, पंचसमिति और द्वादश भावना से उपसम्पन्न होकर संयती पाँच महाव्रतों की रक्षा करने का कथन किया गया है (73-76)। साथ ही गुप्तियों और समितियों को हीव्यक्ति काशरणदाता एवं त्राणदाता बतलाया है (77)। . आत्मा के प्रयोजन को सिद्ध करने में सभी समर्थ नहीं हैं। आत्मा के प्रयोजन को सिद्ध करने में कौन सक्षम है ? यह कथन करते हुए कहा है कि यदि सद्पुरुष अनाकांक्ष और आत्मज्ञ हैं तो वे पर्वत को गुफा, शिलातल या दुर्गम स्थानों पर भी अपनी आत्मा के प्रयोजन को सिद्ध कर लेते हैं (80-84)। अकृत-योगऔर कृत-योग के गुण-दोष की प्ररुपणा करते हुए कहा है कि कोई श्रुत सम्पन्न भले ही हों, किन्तु यदि वह बहिर्मुखी इन्द्रियों वाला, छिन्न चारित्र वाला, असंस्कारित तथा पूर्व में साधना नहीं किया हुआ है तो वह मृत्यु के समय में अवश्य अधीर हो जाता है। ऐसा व्यक्ति मृत्यु के अवसर पर परीषह सहन करने में असमर्थ होता है। किन्तु जो व्यक्ति विषयसुखों में आसक्त नहीं रहता, भावीफल की आकांक्षा नहीं रखता तथा जिसके कषाय नष्ट हो गए हों, वह मृत्यु को सामने देखकर भी विचलित नहीं होता, अपितु तत्परतापूर्वक मृत्यु का आलिंगन कर लेता है (85-93)। वस्तुतः यही समाधिमरण की अवस्था है। प्रत्येक जैन मतावलम्बीअपने जीवन के अंतिम क्षण में समस्त प्रकार के क्लेषों से मुक्त हो, राग-द्वेष को त्याग करके इसी प्रकार मरने की अभिलाषा करता है। समाधिमरण का हेतु क्या है? इस विषय में कहा गया है कि नतो 1. 2. 3. स्थानांग1/191,3/1/58,3/4/515, 4/1/60। समवायांग4/20,6/311 उत्तराध्ययन 30/35, 31/8।
SR No.006192
Book TitlePrakrit Ke Prakirnak Sahitya Ki Bhumikaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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