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मीमांसा" में महाप्रत्याख्यान की विषयवस्तु का वर्णन करते हुए लिखा है कि साधक जघन्य व मध्यम आराधना से सात-आठ भव में मोक्ष प्राप्त करता है । ' मूल ग्रंथ को देखने पर ज्ञात होता है कि यद्यपि ग्रंथ की गाथा 137 में आराधना के चार स्कन्धोंज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप का तथा उसके तीन प्रकारों- उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य का उल्लेख हुआ है, किन्तु आराधना फल को सूचित करने वाली गाथा 138 में यह कहा गया है कि जो विज्ञ साधक इन चार स्कन्धों की उत्कृष्ट साधना करता है, वह उसी भव में मुक्त हो जाता है । पुनः गाथा 139 में कहा गया है कि जो विज्ञ साधक चारों आराधना स्कन्धों की जघन्य साधना करता है वह शुद्ध परिणाम कर सात-आठ भव करके मुक्त हो जाता है। यहाँ ग्रंथ में मध्यम आराधना के फल का कही कोई उल्लेख नहीं हुआ है। हम मुनिजी से जानना चाहेंगे कि उन्होंने किस आधार पर यह कहा है कि मध्यम आराधना वाला सात-आठ भव करके मोक्ष प्राप्त करता है । किसी अन्य ग्रंथ के आधार पर उन्होंने यह कथन किया हो तो अलग बात है अन्यथा प्रस्तुत कृति में ऐसा कोई संकेत नहीं है जिससे उनके निष्कर्ष की पुष्टि की जा सके । यदि हमें मध्यम आराधना के फल को निकालना है तो उत्कृष्ट आराधना और जघन्य आराधना से प्राप्त फल के मध्य ही निकालना होगा अर्थात् यह मानना होगा कि व्यक्ति मध्यम आराधना से परिणामों की विशुद्धि के आधार पर कम से कम दो भव और अधिक से अधिक छह भव में मुक्ति प्राप्त कर सकता है। भगवती आराधना में भी मध्यम आराधना का फल बताते हुए यही कहा है कि मध्यम आराधना करके धीर पुरुष तीसरे भव में मुक्ति प्राप्त करते हैं । पुनः उत्कृष्ट और जघन्य आराधना के फल के विषय में भी भगवती आराधना का कथन महाप्रत्याख्यान के समान ही है । '
ग्रंथ का समापन यह कह कर किया गया है कि धैर्यवान् भी मृत्यु को प्राप्त होता है और कायर पुरुष भी, किन्तु मरना उसी का सार्थक है जो धीरतापूर्वक मरण को प्राप्त होता है। क्योंकि समाधिमरण ही उत्तम मरण है। अंतिम गाथा में कहा गया है कि जो संयमी साधक इस प्रत्याख्यान का सम्यक् प्रकार से पालन कर मृत्यु को प्राप्त होंगे, वे मर कर या तो वैमानिक देव होंगे या सिद्ध होंगे।
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जैन आगम साहित्य मनन और सीमांस, पृ. 390-391। भगवती आराधना, गाथा 21551
भगवती आराधना, गाथा 2154, 2156।