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समान रूप से ग्राह्य रहे हैं। श्वेताम्बर और यापनीय- दोनों को यह अधिकार है कि वे उन्हें अपनी परंपरा को बताएँ, किन्तु उन्हें साम्प्रदायिक अर्थ में श्वेताम्बर या यापनीय नहीं कहा जासकता है। वे दोनों के ही पूर्वज हैं।
(7) प्रो. ए.एन. उपाध्ये ने उन्हें कर्नाटकीय ब्राह्मण बताकर कर्नाटक में यापनीय परंपरा का प्रभाव होने से उनको यापनीय परंपरा से जोड़ने का प्रयत्न किया है, किन्तु उत्तर-पश्चिम कर्नाटक में उपलब्ध पाँचवीं, छठवीं शताब्दी के अभिलेखों से यह सिद्ध होता है कि उत्तर भारत के श्वेतपट्ट महाश्रमण संघ का भी उस क्षेत्र में उतना ही मान था, जितना निग्रंथ संघ और यापनीयों का था। उत्तर भारत के ये आचार्य भी उत्तर कर्नाटक तक की यात्राएँ करते थे। सिद्धसेन यदि दक्षिण भारतीय ब्राह्मणभी रहे हों, तो इससे यह फलित नहीं होता कि वे यापनीय थे। उत्तर भारत की निर्ग्रन्थ धारा, जिसमें श्वेताम्बर और यापनीयों का विकास हुआ है, का भी बिहार दक्षिण में प्रतिष्ठानपुर अर्थात् उत्तर पश्चिमी कर्नाटक तक निर्बाध रूप से होता रहा है। अतः, सिद्धसेन का कर्नाटकीय ब्राह्मण होना उनके यापनीय होने का प्रबल प्रमाणनहीं माना जाता है। ___मेरी दृष्टि में इतना मानना ही पर्याप्त है कि सिद्धसेन कोटिकगण की उस विद्याधर शाखा में हुएथे, जो कि श्वेताम्बर और यापनीयों की पूर्वज है।
(8) पुनः, कुन्दकुन्द के ग्रंथों और वट्टकेर के मूलाचार की जो सन्मतिसूत्र से निकटता है, उसका कारण यह नहीं है कि सिद्धसेन दक्षिण भारत के वट्टकेर या कुन्दकुन्द से प्रभावित हैं। अपितु स्थिति इसके ठीक विपरीत है । वट्टकेर और कुन्दकुन्द- दोनों ही ने प्राचीन आगमिक धारा और सिद्धसेन का अनुकरण किया। कुन्दकुन्द के ग्रंथों में बस-स्थावर का वर्गीकरण, चतुर्विधमोक्षमार्ग की कल्पनाआदि पर आगमिक धारा का प्रभाव स्पष्ट है, चाहे यह यापनियों के माध्यम से ही उन तक पहुँचा हो । मूलाचार का तो निर्माण ही आगमिक धारा के नियुक्ति और प्रकीर्णक साहित्य के आधार पर हुआ है। उस पर सिद्धसेन का प्रभाव होना भी अस्वाभाविक नहीं है। आचार्य जटिल के वरांगचरित से भी सन्मति की अनेक गाथाएँ अपने संस्कृत रूपान्तर में प्रस्तुत हैं। यह सब इसी बात का प्रमाण है कि ये सभी अपने पूर्ववर्ती आचार्य सिद्धसेन से प्रभावित हैं।
प्रो. उपाध्ये का यह मानना कि महावीर का सन्मति नाम कर्नाटक में अति प्रसिद्ध है और सिद्धसेन ने इसी आधार पर अपने ग्रंथ का नाम सन्मति दिया होगा, अतः