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उन्हीं का अनुसरण कर बारह भावनाओं की चर्चा की है। इस सम्बन्ध में एक अन्य ग्रन्थ स्वामी कार्तिकेय का भी है। श्वेताम्बर परम्परा में अनेक आचार्यों ने इन भावनाओं को आधार बनाकर संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश, पुरानी हिन्दी आदि में अनेक ग्रन्थ लिखे है। (१४-२१) दस भक्तियाँ – दस भक्तियों में जुगलकिशोरजी मुख्तार के अनुसार ८ भक्तियाँ ही आचार्य कुन्दकुन्द रचित है – १. थोस्सामि दण्डक (अर्हत भक्ति), २. सिद्ध भक्ति, ३. आचार्य भक्ति, ४. पंचगुरू भक्ति, ५. श्रुत भक्ति, ६. योगी भक्ति, ७. चारित्र भक्ति और ८. सिद्ध भक्ति । शेष दो भक्तियाँ किसके द्वारा रचित है, यह विचारणीय है। भक्तियों को स्वतंत्र ग्रन्थ मानने में एक समस्या है, क्योंकि ये स्तुति रूप भक्तियाँ अति संक्षिप्त है। इस कारण कुछ आचार्य इन दस भक्तियों को भी एक ही ग्रन्थ मानते है। इनमें ८ भक्तियों कुन्दकुन्द द्वारा रचित मानी गई है। इनके अरिरिक्त २२ रयणसार, २३ मूलाचार आदि अन्य कुछ ग्रन्थ भी कुन्दकुन्द रचित माने जाते है यद्यपि इनका कुन्दकुन्द रचित होना विवादास्पद है। आचार्य कुन्दकुन्द रचित माने गये इन ग्रन्थों में श्वेताम्बर मान्य आगमों से कहाँ-कहाँ और कौनसी गाथाएँ समान है यहाँ बताना भी विवाद को जन्म देगा, अतः हम इस चर्चा को विराम देकर इस विषय को यही समाप्त कर देना उचित होगा। यहाँ मेरा आशय यह है कि हम आचार्य श्री के साहित्यिक अवदान के महत्व को हम समझे यही उचित होगा।