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है वे भी ईसा की ६वीं शती के ही हैं। यदि कुन्दकुन्दान्वय से कुन्दकुन्द का काल सौ वर्ष पूर्व भी मान लिया जाए तो भी कुन्दकुन्द का समय ईसा की छठी शती से पूर्व नहीं जाता है ।
प्रों. रतनचन्द्रजी ने सभी प्राचीन स्तर के ग्रन्थों अर्थात् मूलचार, भगवती आराधना, षट्खण्डागम, तत्त्वार्थसूत्र आदि में कुन्दकुन्द के ग्रन्थों से गाथाएँ लेने का जो संकेत किया है, उस सम्बन्ध में मेरा एक ही प्रश्न है यदि इन सभी ग्रन्थकारों ने कुन्दकुन्द के ग्रन्थों से गाथाएँ और अवधारणाएँ गृहीत की है, तो वे उनके नाम का उल्लेख क्यों नहीं करते है ? गाथाएँ ले ले और नाम लेना भूल जाये, यह तो एक गृहस्थ के लिए उचित नहीं है तो साधु और वह भी शुद्ध आचारवान् दिगम्बर मुनियों के लिए कैसे क्षम्य होगा ? यह विचारणीय अवश्य है ? आदरणीय भाई रतनचन्द्रजी ने मेरे से असहमत होकर भी उनके ग्रन्थ में और लेखों में मेरे प्रति जो आदरभाव प्रकट किया है वही यह संकेत करता है कि पूज्य मुनिवरों ने जब कुन्दकुन्द के ग्रन्थों से अनेकों गाथाएँ और सैद्धान्तिक अवधारणाएँ गृहीत की, तो वे आदर पूर्वकउनके नाम का स्मरण करना कैसे भूल गये ? यदि हम पंचास्तिकाय के टीकाकार जयसेन और बालचन्द्रजी की बात को मानकर यह कहे कि कुन्दकुन्द ने यह ग्रन्थ महाराज शिवकुमार के लिए लिखा और ये शिवकुमार, शिवमृगेश वर्मा ही थे, जो शक संवत् ४५० में राज्य करते थे तो भी कुन्दकुन्द का काल ईसा की छठी शती से पूर्व नहीं ले जाया सकता है। इस प्रकार मेरी दृष्टि में कुन्दकुन्द के काल की अपर सीमा ई. सन् की छठीं शती और निम्न सीमा ई. सन् की आठवीं शती मानी जा सकती है। आगे हम उनके साहित्यि अवदान की चर्चा करेगे ।
आचार्य
कुन्दकुन्द का साहित्यक अवदान
आचार्य कुन्दकुन्द का साहित्यिक अवदान स्तर और ग्रन्थ संख्या दोनों ही अपेक्षा से महान है। यह माना जाता है कि उनके २२ या २३ ग्रन्थ आजभी उपलब्ध है। यद्यपि उन्हें ८४ पाहुडों (प्राभृतों) का लेखक माना जाता है तथापि आज वे सभी ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है, यदि अष्ट पाहुड़ को आठ बारसाणुवेक्खा को बारह और दस भक्ति को दस ग्रन्थ माना जाये तो आज भी यह संख्या लगभग 35 के आसपास पहुँच जाती है । उनके उपलब्ध ग्रन्थों की सूची बनाते समय जुगल किशोर जी मुख्तार ने अष्ट प्राभृतों और दस भक्तियों
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