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________________ 69 जुगलकिशोरजी मुख्तार ने यह माना है कि कुन्दकुन्द ई. पूर्व सन् ८ से ई. सन् १६५ के बीच स्थित थे, अर्थात ईसा की दूसरी शती में हुए । पं. कैलाशचन्दजी मर्करा अभिलेख के आधार पर उन्हे ईसा की तीसरी-चौथी शती का मानते है । वह पट्टावली, जिसके आधार पर कुन्दकुन्द को ई. पू. प्रथम शताब्दि में रखा जाता है, वह बहुत ही परवर्ती काल की है। उसकी समय रचना विक्रम संवत् १८०० के आस-पास है। इस प्रकार अपने से अठारह सौ वर्ष पूर्व हुए व्यक्ति के सम्बन्ध वह कितनी प्रमाणिक होगी, यह विचारणीय है। मैने ही नहीं, अपितु दिगम्बर जैन विद्वान पं. जुगलकिशोरजी मुख्तार ने भी इस पट्टावली को अप्रमाणिक माना है वे लिखते हैं कि "इसमें प्राचीन आचार्यो का समय और क्रम बहुत कुछ गडबड में पाया जाता है उदाहरण के लिए पूज्यपाद (देवनन्दी) के समय को ही लीजिये, पट्टावली में वह वि. सं. २५८ से ३०८ तक दिया है। परन्तु इतिहास में वह ४५० के करीब आता है । इतिहास में वसुनन्दी का समय विक्रम की १२वीं शती माना जाता है । परन्तु पट्टावली में छठीं शताब्दि (५२५–५३१) दिया गया, मेरी दृष्टि में यह ६०० वर्ष की भूल प्रारम्भ से चली आ रही है। अतः पं. जुगलकिशोरजी मुख्तार लिखते हैं - यह पट्टावली संदिग्ध अवस्था में है और केवल इसी के आधार पर किसी के समयादि का निर्णय कैसे किया जा सकता है ? प्रो. हार्नले, डॉ. पिटर्सन ने इसी आधार पर उमास्वाती को ईसा की पहली शती का विद्वान लिखा है और इससे यह मालूम होता है कि उन्होंने इस पट्टावली की कोई विशेष जाँच नहीं की । (देखें - स्वीमी समन्तभद्र पृ. १४५–१४६)। प्रो. रतनचन्दजी इसे प्रमाण मानकर कुन्दकुन्द को ई. पूर्वोत्तर प्रथम शती का मान रहे है, यह बात कितनी प्रामाणिक होगी ? यदि यह पट्टावली अन्यों के बारे में भी समय की अपेक्षा अप्रमाणिक है, तो कुन्दकुन्द के बारे में प्रमाणिक कैसे होगी ? वे भगवती आराधना, मूलाचार आदि में समान गाथाएँ दिखाकर यह कैसे सिद्ध कर सकते है, वे गाथाएँ या प्रसगं कुन्दकुन्द से उनमें लिये गये है। यह भी हो सकता है कि कुन्दकुन्द ने ये प्रसंग वहाँ से लिये हों । कुन्दकुन्द के समय के सम्बन्ध में इन सभी विद्वानों के मत न केवल एक-दूसरे के विरोधी है अपितु समीक्ष्य भी है। मेरी दृष्टि में कुन्दकुन्द ईसा की छठी शताब्दि के पूर्व के नहीं हो सकते हैं ? (१) यदि वे ईसा की प्रथम से लेकर तीसरी, चौथी शती तक के भी होते तो कोई
SR No.006191
Book TitleJain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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