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65 स्थान पर उमास्वाति के भाष्यमान्य पाठ के अनुरूप पाँच ही नयों का उल्लेख है। यदि उमास्वाति चौथी या पाँचवीं शती के हैं, तो यह ग्रंथ भी पांचवीं या छठवीं शती से प्राचीन नहीं हो सकताऔर इसकाजो काल है, वहींपुष्पदंत और भूतबलि का काल है फिरभी इतना निश्चित है कि पुष्पद और भूतबलिकर्म सिद्धांत के गहन ज्ञाताथे। संदर्भ: 1. जैन शिलालेख संग्रह, भाग-1, सिद्धरवसति अभिलेख, क्रमांक 105. 2. षट्खण्डागमधवलाटीका समन्वित, खण्ड-1, भाग-1 पुस्तक-1,
प्रस्तावना, पृ. 21-22 पर उद्धृत. 3. पट्टावलीपरागसंग्रह, पृ- 117-118.
षट्खण्डागम, धवलाटीकासमन्वित, खण्ड-1, भाग-1, पुस्तक-1
प्रस्तावना, पृ. 42. 5. वही, प्रस्तावना, पृ.-23. 6. जैन शिलालेख संग्रह, भाग-3, प्रस्तावना, पृ. 62.
मणुसिणीसुमिच्छाइट्टि सासणसम्माइट्ठि ट्ठाणे सियापज्जत्तियाओसिया
अपज्जतियाओ॥92॥ सम्मामिच्छाइट्ठि असंजदसम्माइट्ठिसंजदासंजदसंजद णियमा
पज्जत्तियाओ॥93॥ 8. देखें-वहीखण्ड 1, भाग 1, पुस्तक 1, पृष्ठ 334 पर धवलाटीका. 9. पण्णवणासुत्तभाग-प्रस्तावना (गुजराती), पृ., महावीर विद्यालयबम्बई.
देखें- षट्खण्डागम, खण्ड 1, भाग 1, पुस्तक 1 के द्वितीयसंस्करण की भूमिका, पृ. 10.