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3. प्रज्ञापना के 36 पदों में से कर्मबंधक, कर्मवेदक, वेदबंधक, वेदवेदक और वेदना- ये छ्रः खण्ड, षट्खण्डागम में भी इसी नाम से सूचित किये गये हैं, जिनकी समानता तुलनीय है ।
4. जहाँ प्रज्ञापनासूत्र भगवती के समान प्रश्नोत्तर शैली में लिखा गया है, वहाँ षट्खण्डागम में कुछ प्रश्न - उत्तर भी संग्रहीत हैं ।
5. प्रज्ञापना एक ही आचार्य की संग्रहकृति है, उसमें कोई चूलिका नहीं है, किन्तु षट्खण्डागम की स्थिति इससे भिन्न है, उसमें अनेक चूलिकाएँ भी समाविष्ट हैं। 6. जहाँ प्रज्ञापना सूत्र - शैली का ग्रंथ है, वहां षट्खण्डागम अनुयोग-शैली या व्याख्या - शैली का ग्रंथ है ।
7. उपर्युक्त कुछ भिन्नताओं के होते हुए भी षट्खण्डागम और प्रज्ञापना में निरूपणसाम्य और शब्दसाम्य है । प्रज्ञापना की गाथाएं क्र. 99-100-101 षट्खण्डागम में सूत्र क्र. 122-23-24 में पाई जाती हैं, किन्तु जहाँ 'इमं भणिदं' कहकर इन गाथाओं को षट् खण्डागम में उद्धृत किया गया है, वहां प्रज्ञापना में ऐसा कोई निर्देश नहीं है । इन गाथाओं के अतिरिक्त महादण्डक की चर्चा दोनों में बहुत कुछ समानरूप से मिलती है। अल्पबहुत्व की इस चर्चा को प्रज्ञापना में 26 द्वारों के द्वारा विवेचित किया गया है, जबकि षट्खण्डागम में मात्र गति आदि 14 द्वारों के आधार पर इसकी चर्चा की गई है। प्रज्ञापना में जो अधिक द्वार हैं, उनका कारण यह है कि उनमें जीव और अजीव - दोनों की दृष्टि से विचार किया गया है, जबकि षट्खण्डागम में मात्र
जीव की दृष्टि से विचार किया गया है । षट्खण्डागम के 14 द्वार प्रज्ञापना में भी उसी नाम से मिलते हैं, मात्र क्रम का अंतर है ।
8.जहाँ प्रज्ञापना में महादण्डक में जीव के 98 भेदों का उल्लेख है, वहां षट्खण्डागम के महादण्डक में जीव के मात्र 78 भेदों का उल्लेख है। प्रस्तुत प्रकरण में प्रज्ञापना में वैचारिक विकास देखा जाता है, जबकि यहाँ षट्खण्डागम प्राचीन परंपरा का अनुसरण करता है, किन्तु अन्य प्रकरणों में प्रज्ञापना की अपेक्षा षट्खण्डागम में विकास देखा जाता है ।
9. प्रज्ञापना और षट्खण्डागम- दोनों में ही तीर्थंकर, चक्रवर्त्ती, बलदेव, वासुदेव आदि पद की प्राप्ति की चर्चा है ।
10. जिस प्रकार प्रज्ञापना में नियुक्तियों की अनेक गाथाएं हैं, उसी प्रकार