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51 'जोणीपाहुड' में उसके कर्ता का नाम प्रज्ञाश्रमण (पन्नसवण) भी उल्लेखित है। प्रज्ञाश्रमण, क्षमा-श्रमण या क्षपण-श्रमण की तरह ही एक उपाधि रही है, जो उत्तर भारतीय अविभक्त निर्ग्रन्थ परंपरा में प्रचलित थी। नन्दीसूत्र (29) में आर्यनन्दिल को वंदन करते हुए ‘पसण्णमण' शब्द आया है, उसमें वर्णव्यत्यय हुआ है, मेरी दृष्टि में उसे 'पण्णसमणं' होना चाहिये । घवला में प्रज्ञाश्रमण को नमस्कार किया गया है " तिलोयपण्णति में प्रज्ञाश्रमणों में वज्रयश (वइरजस) को अंतिम प्रज्ञाश्रमण कहा गया . है"। कल्पसूत्र की स्थविरावली में आर्यवज्र और उनके शिष्य आर्यवज्रसेन का तथा आर्यवज्र से वज्री शाखा और आर्य नागसेन से नागली शाखा के निकलने का उल्लेख है। वज्रसेन का काल वीर निर्वाण के 616 से 619 माना गया है। ये नागहस्ति के समकालीन भी हैं। नन्दीसंघ की प्राकृत पट्टावली के अनुसार धरसेन का काल भी यही है। सबसे महत्वपूर्ण सूचना यह है कि मथुरा के हुविष्क वर्ष 48 के एक अभिलेख में ब्रह्मदासिक कुल और उच्चनागरी शाखा के धर' का उल्लेख है"। लेख के आगे के अक्षरों के घिस जाने के कारण पढ़ा नहीं जा सका, हो सकता है, पूरा नाम धरसेन' हो । क्योंकि कल्पसूत्र स्थविरावली में शांतिसेन, वज्रसेन आदिसेन नामान्तक नाम मिलते हैं, अतः इसे धरसेन होने की संभावनाको निरस्त नहीं किया जा सकता है। इस काल में हमें कल्पसूत्र स्थविरावली में एक पुसगिरि का भी उल्लेख मिलता है, हो सकता है, ये पुष्पदंत हों। इसी प्रकार नन्दीसूत्र वाचकवंश स्थविरावली में भूतदिन का भी उल्लेख है। इनका समीकरणभूतबलि से कियाजा सकता है।
___ यह महत्वपूर्ण है कि भूतदिन उसी नागिल शाखा के हैं, जो प्रज्ञाश्रमण वज्रसेन से प्रारंभ हुई थी। यद्यपि इस संदर्भ में अभी अधिक प्रमाणों की खोज और गंभीर चिंतन की अपेक्षा है, फिर भी यदिधरसेन वीर निर्वाण की छठवीं शताब्दी में हुए हैं और वे भी योनिप्राभृत के कर्ता है, तो वे मथुरा के उक्त अभिलेख के आधार पर श्वेताम्बरों और यापनीयों के ही पूर्वज है। इस अभिलेख का काल और नंदीसंघ की प्राकृत पट्टावलीसे दिया गया धरसेन का काल समान ही है। योनिप्राभृत के श्वेताम्बर परंपरा में मान्य होने से भी उनका श्वेताम्बरों और यापनीयों की पूर्वज उत्तर भारतीय निग्रंथ धारा से होना ही सिद्ध होता है।
___ यदि हम नंदीसंघ की प्राकृत पट्टावली और मथुरा के पूर्वोत्तर अभिलेख से अलग हटकर षट्खंडागम की टीका धवला के आधार पर धरसेन के संबंध में विचार