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________________ 47 5. Malvania Felicitiation, Vol. I,P.V. Research Institute Varanasi English Section, M.A. Dhaky, The Date of Kundakundacharya, p. 190. Ibid, p. 189-190. 6. श्रीपट्टावलीपरागसंग्रह, मुनि कल्याणविजयजी, पृ. 100-107. (अ) गुणठाण मग्गणेहिं य पज्जत्तीपाणजीवठाणेहिं। ठावण पंचविहेहिं पणयव्वाअरहपुरिसस्स॥ तेरहमे गुणठाणे सजोइकेवलिय होइ अरहंतो। चउतीस अइसयगुणाहोंति हुतस्सठ्ठपडिहारा॥ -बोधपाहुड 31-31. जीवसमासाइं मुणीचउदसगुणठाणामाई॥-भावप्राभूत 97. णेवयजीवठाणाणगुणठाणायअत्थिजोवस्स।-समयसार 55. (द) णाहं मग्गठाणोणाहंगुणठाणजीवठाणोण। नियमसार 78. 8. सियअत्थिणत्थि उहयं अव्वत्तव्वंपुणो यतत्तिदयं। दव्वं खुसत्तभंगंआदेसवसेणसंभवदि॥-पंचास्तिकायसार 14. 9. (अ) जीवाश्चतुर्दशसु गुणस्थानेषु व्यवस्थिताः मिथ्यादृष्टि, सासादन सम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टिः, असंयत सम्यग्दृष्टिः, संयतासंयत, प्रमत्तसंयतः, अप्रमत्तसंयतः, अपूर्वकरणस्थाने उपशमकः क्षपकः, अनिवृत्तिबादरगुणस्थाने उपशमकः क्षपकः, सूक्ष्मसाम्परायस्थाने उपशमकः क्षपकः, उपशांतकषाय वीतरागछद्मस्थः, क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थः, सयोगी केवली, अयोगकेवली चेति..../1/8. ___(ज्ञातव्य है कि गुणस्थान संबंधी यह संपूर्ण विवरण पं. फूलचन्द्रजी सिद्धांतशास्त्रीद्वारा सम्पादित सर्वार्थसिद्धि में पृ. 29 से पृ. 92 तक लगभग 64 पृष्ठों में हुआ है- इसका तात्पर्य है कि पूज्यपाद के समक्ष यह सिद्धांत पूर्ण विकसित रूप में था) (ब) (i) प्रश्नवशादेकस्मिन् वस्तुन्यविरोधेन विधि प्रतिषेध कल्पना सप्तभंगी1/6/5 तत्त्वार्थ - वर्त्तिक। (अकलंक के तत्त्वार्थ कार्तिक में सप्तभंगी का यह विवरण पृ. 33 से 35 तक तीन पृष्ठों में उपलब्ध है। (ज्ञानपीठ संस्करण)
SR No.006191
Book TitleJain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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