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________________ 46 I यद्यपि इससे हमारे कहने का तात्पर्य यह भी नहीं है कि वल्क्तभी वाचना के वर्त्तमान में श्वेताम्बर द्वारा मान्य आगम उनके तत्त्वार्थसूत्र का आधार है, क्योंकि यह वाचना तो उमास्वाति के बाद की है । वस्तुतः, स्कंदिल की माथुरी वाचना (वीर निर्वाण 827-840) के भी पूर्व फल्गुमित्र के समय जो आगम ग्रंथ उपस्थित थे, वे ही तत्त्वार्थसूत्र की रचना के मुख्य आधार रहे हैं । मेरी दृष्टि में उमास्वाति स्कंदिल से पूर्ववर्ती है, अतः उनका आधार फल्गुमित्र के युग के आगम ग्रंथ ही थे । यद्यपि वर्त्तमान में श्वेताम्बर परंपरा द्वारा मान्य आगमों से इनमें बहुत अधिक अंतर नहीं रहा होगा, फिर भी कुछ पाठभेद और मान्यताभेद तो अवश्य ही रहे होंगे। दूसरे, वर्त्तमान में उपलब्ध श्वेताम्बर आगम कोटिकगण की वज्रीशाखा के हैं, जबकि उमास्वाति कोटिकगण की उच्चनागरी शाखा में हुए हैं, इन दोनों शाखाओं में और उनके मान्य आगमों में कुछ मान्यताभेद और कुछ पाठभेद अवश्य ही रहा होगा, यह माना जा सकता है । संभवतः, उसी उच्च नागरी शाखा में मान्य आगमों को ही उमास्वाति ने अपने ग्रंथ की रचना का आधार बनाया होगा, जिसके परिणामस्वरूप चार-पाँच स्थानों पर तत्त्वार्थसूत्र और उसकी भाष्यगत मान्यताओं में वर्त्तमान श्वेताम्बर आगमिक परंपरा की मान्यताओं से मतभेद आ गया है, जिसकी चर्चा हमने आगे की है, फिर भी इतना सुनिश्चित है कि उमास्वाति के तत्त्वार्थसूत्र का आधार वे ही आगम ग्रंथ रहे हैं, जो क्वचित् पाठभेदों के साथ श्वेताम्बरों में आज भी प्रचलित हैं और यापनीयों में भी प्रचलित थे । इससे इस भ्रांति का भी निराकरण हो जाता है कि तत्त्वार्थसूत्र की रचना का आधार षट्खण्डागम और कुन्दकुन्द के ग्रंथ हैं, क्योंकि ये ग्रंथ तत्त्वार्थसूत्र की अपेक्षा पर्याप्त परवर्ती हैं और गुणस्थान, सप्तभंगी आदि परवर्ती युग में विकसित अवधारणाओं के उल्लेखों से युक्त हैं। संदर्भ : · - 1. 2. 3. 4. देखें - तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा, नेमीचन्द्र शास्त्री (अ. भा. दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद्), भाग 2, पृ. 159-162. (अ) जैन साहित्य और इतिहास पर विशदप्रकाश, (पं. जुगलकिशोर मुख्तार), पृ. 125. (ब) जैन साहित्य का इतिहास, भाग 2, (पं. कैलाशचन्दजी), पृ. 249. जैन साहित्य और इतिहास, (पं. नाथूरामजी प्रेमी), पृ. 530-531. Aspects of of Jainology, Vol. III, Pt. Dalsukhbai
SR No.006191
Book TitleJain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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