________________
28
जन्में होंगे। उच्चैर्नागर ऊँचेहरा से मथुरा, जहाँ उच्चनागरी शाखा के अधिकतम लेख प्राप्त हुए हैं तथा पटना, जहाँ उन्होंने तत्त्वार्थभाष्य की रचना की, दोनों ही लगभग समान दूरी पर अवस्थित रहे हैं। वहाँ से दोनों स्थानों की दूरी 350 कि.मी. है और किसी जैन साधु के द्वारा यहाँ से एक माह की पदयात्रा कर दोनों स्थलों पर आसानी से पहुँचा जा सकता था। स्वयं उमास्वाति ने ही लिखा है कि विहार (पदयात्रा) करते हुए वे कुसुमपुर (पटना) पहुँचे थे (विहरतापुरवरेकुसुमनामस्ति)। इससे यही लगता है कि न्यग्रोध, (नागोद), कुसुमपुर (पटना) के बहुत समीप नहीं था। डॉ. हीरालाल जैन ने संघ विभाजन स्थल रहवीरपुर की पहचान दक्षिण में महाराष्ट के अहमदनगर जिले के राहुरी ग्राम से और उमास्वाति के जन्मस्थल की पहचान उसी के समीप स्थित निधोज' से की, किन्तु यह ठीक नहीं है। प्रथम तो व्याकरण की दृष्टि से न्यग्रोध का प्राकृत रूप नागोद होता है, निधोज नहीं। दूसरे उमास्वाति जिस उच्चैर्नागरशाखा के थे, वह शाखा उत्तर भारत कीथी, अतः उनका संबंध उत्तर भारत से ही रहा होगा और इसलिये उनका जन्मस्थल भी उत्तरभारत में ही होगा।
उच्चनागरीशाखा के उत्पत्ति स्थल ऊँचेहरा से लगभग 30 कि.मी. पश्चिम की ओर 'नागोद' नाम का कस्बा आज भी है। आजादी के पूर्व यह एक स्वतंत्र राज्य था और ऊँचेहरा इसी राज्य के अधीन आता था। नागोद के आस-पास भी जो प्राचीन सामग्री मिली है, उससे यही सिद्ध होता है कि यह भी प्राचीन नगर था। प्रो. के.डी. बाजपेयी ने नागोद से 24 कि.मी. दूर नचना के पुरातात्त्विक महत्व पर विस्तार से प्रकाशडालाहै। नागोद की अवस्थितिपन्ना (म.प्र.), नचना और ऊँचेहरा के मध्य है। इन क्षेत्रों में शुंगकाल से लेकर 9वीं-10वीं शती तक की पुरातात्त्विक सामग्री मिलती है, अतः इसकी प्राचीनता में संदेह नहीं किया जा सकता। नागोद न्यग्रोध का ही प्राकृत रूप है, अतः संभावना यही है कि उमास्वाति का जन्म-स्थल यही नागोद था और जिस उच्चनागरी शाखा में वे दीक्षित हुए थे, वह भी उसी के समीप स्थित ऊँचेहरा (उच्चकल्प नगर) से उत्पन्न हुई थी। तत्त्वार्थभाष्य की प्रशस्ति में उमास्वाति की माता को वात्सी कहा गया है। हमें यह स्मरण रखना चाहिये कि वर्तमान नागोद और ऊँचेहरा - दोनों ही प्राचीन वत्स देश के अधीन ही थे। भरहुत और इस क्षेत्र के आस-पास जो कला का विकास देखा जाता है, वह कौशाम्बी अर्थात् वत्सदेश के राजाओं के द्वारा ही किया गया था। ऊँचेहरा वत्सदेश के दक्षिण का एक प्रसिद्ध नगर था। भरहुत के स्तूप के निर्माण में भी वात्सी गोत्र के लोगों का महत्वपूर्ण योगदान था, ऐसा वहाँ से प्राप्त