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अभिलेखों से प्रमाणित होता है । भरहुत के स्तूप के पूर्वी तोरणद्वार पर वाच्छीपुत्त धनभूति का उल्लेख है। वत्सगोत्र के लोगों की बहुलता के कारण ही यह क्षेत्र वत्स देश कहलाता होगा और उमास्वाति का जन्मस्थल नागोद मध्यप्रदेश (न्यग्रोध) और उनकी उच्चैर्नागर शाखा का उत्पत्ति स्थल ऊँचेहरा (म.प्र.) है। पुनः, उन्होंने वर्तमान पटना (कुसुमपुर) में अपना तत्त्वार्थभाष्य लिखाथा, अतः वे उत्तर भारत के निग्रंथ संघ में हुए हैं। उनका विचरण क्षेत्र पटना से मथुरा तक अर्थात् वर्तमान बिहार, उत्तरप्रदेश, उत्तर-पूर्वी मध्यप्रदेश और पश्चिमी राजस्थान तक मानाजासकता है।
इस प्रकार, प्रस्तुत आलेख में मैंने उमास्वाति के जन्मस्थल और विचरण क्षेत्र का विचार किया, जो मुख्यतः अभिलेखीय और साहित्यिक साक्ष्यों पर आधारित है। विद्वानों से मैं इनकी सम्यक् समीक्षा की अपेक्षा रखता हूँ, ताकि इस महान् जैन दार्शनिक के इतिवृत्त को अनुश्रुतियों की धुंध से निकालकर ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में सम्यकरूपेण देखा जासके। उमास्वाति की उच्चैर्नागर शाखा काउत्पत्तिस्थलऊँचेहरा (म.प्र.)
यहाँ हम उच्चैर्नागर शाखा के संदर्भ में ही चर्चा करेंगे। विचारणीय प्रश्न यह है कि वह उच्चैर्नागर कहाँ स्थित था, जिससे यह शाखा निकली थी । मुनिश्री कल्याणविजयजी और हीरालाल कापड़िया ने कनिंघम को आधार बनाते हुए, इस उच्चैर्नागर शाखा का संबंध वर्तमान बुलंदशहर पूर्वनाम वरण से जोड़ने का प्रयत्न किया है। पं. सुखलालजी ने भी तत्त्वार्थ की भूमिका' में इसी का अनुसरण किया है। कनिंघम लिखते हैं कि 'वरण या बारण- यह नाम हिन्दू इतिहास में अज्ञात है। बरण' के चार सिक्के बुलंदशहर से प्राप्त हुए हैं। मुलसमान लेखकों ने इसे बरण कहा है। मैं समझता हूँ कि यह वही जगह होगी और इसका नामकरण राजा अहिबरण के नाम के आधार पर हुआ होगा, जो तोमर वंश से संबंधित था और जिसने यह किला बनवाया था। यह किला बहुत पुराना है और एक ऊँचे टीले पर बना हुआ है। इसके आधार पर ही हिन्दुओं द्वारा इसे ऊँचा गाँव या ऊँचा नगर कहा गया है और मुसलमानों ने बुलन्दशहर कहा है।' यद्यपि कनिंघम ने कहीं भी इसका संबंध उच्चैर्नागर शाखा से नहीं बताया, किन्तु उनके द्वारा बुलन्दशहर का ऊँचा नगर के रूप में उल्लेख होने से मुनि कल्याणविजय और कापड़ियाजी तथा बाद में पं. सुखलालजी ने उच्चै गरशाखा को बुलन्दशहर से जोड़ने के प्रयास किया। प्रो. कापड़िया ने यद्यपि अपना कोई स्पष्ट