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________________ 26 अज्जसंपलिए थेरे अज्ज भद्दे । थेरे अज्ज जेहिल्लस्स... अज्ज विहू थेरे । - कल्पसूत्र स्थविरावली, 20-27. (ब) ततो वंदे य भद्दगुत्तं । वड्ढउ वायगवंसो रेवइनक्खत्त नामाणं - नन्दिसूत्र, स्थविरावली, 31, 35. 41. सद्धर्मकरणपरस्य श्वेतपट्टमहाश्रमणसंघस्य । - जैनशिलालेख संग्रह, भाग3. लेखक्रमांक 98. 42. ( अ ) तित्थोगालीपइन्नयं, सं मुनिपुण्यविजयी, गाथा 702 806. (ब) आवश्यकचूर्णि, भाग-2, पृ. 178, ऋषभदेव केशरीमल श्वेताम्बर संस्था, रतलाम, 1929 ई. 43. वंदामि भद्दबाहुं पाईणं चरिमसयलसुयनाणिं । सुत्तस्स कारगमिसिं दसासु कप्पे यववहारे ॥ - दशाश्रुतस्कन्धनिर्युक्ति, 1. 44. तेण भगवता आयारकप्प, दसाकप्प, ववहारा य नवमपुव्वनी संदभूता निज्जूढा| (ज्ञातव्य है कि निशीथ का एक नाम आचारप्रकल्प भी रहा ) - पंचकल्पचूर्णि, पत्र 1. 45. (अ) अंगप्पभवा जिणभासिया य पत्तेयबुद्धसंवाया। बंधे मुक्खे य कया छत्तीसं उत्तरज्झयणा ॥ - उत्तराध्ययननिर्युक्ति 4. (ब) कम्मप्पवायपुव्वे सत्तरसे पाहुडंमि जं सुत्तं । - उत्तराध्ययननिर्युक्ति 67. 46. उत्तराध्ययनसूत्रम्, सम्पादक उपाध्याय आत्मारामजी, प्रस्तावना, T. 16-17. -
SR No.006191
Book TitleJain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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