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________________ 24 22. T.V.G. Sastri, "An Earlist Jaina Site in the Krishna Valley", Arhat Vacana, Vol. 1(3-4), June-Sept. 89, p. 23-54. 23. हीरालाल जैन, सम्पा. - जैनशिलालेख संग्रह, भाग-1, माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रंथमाला, ग्रन्थांक 28, मुंबई 1928 ई., लेखांक 17-18.. 24. महावीर सवितरिपरिनिवृते भगवत्परमर्षि गौतम गणधर साक्षाच्छिष्य लोहार्य - जम्बु-विष्णुदेवापराजित-गोवर्द्धन-भद्रबाहु-विशाख-प्रोष्ठिल कृत्तिकार्य्य - जयनाम सिद्धार्थ धृतिषेणबुद्धिलादि गुरुपरम्परीण वक्र (क) माभ्यागत महापुरुषसंकृतिकार्यसमवद्योतितान्वय भद्रबाहु स्वामिना उज्जयन्यामष्टांग महानिमित्त तत्त्वज्ञेन त्रैकाल्यदर्शिना निमित्तेन द्वादशसंवत्सर-कालवैषम्यमुपलभ्य कथिते सर्वस्सङ्घ उत्तरापथाद्दक्षिणापथं प्रस्थितः - । पार्श्वनाथवसति शिलालेख, शक संवत् 522, जैन शिलालेख संग्रह, भाग-1, लेखांक 1. 25. सप्ताश्विवेदसंख्यं, शककालमपास्य चैत्र शुक्लादौ। अर्धास्तमितेभानौ, यवनपुरे सौम्य दिवासाद्ये॥ ___-पंचसिद्धान्तिका अंतिम प्रशस्ति, उद्धृत-जैन धर्म का मौलिक इतिहास, भाग-2, पृ. 372. 26. चंदगुत्ति रायहु विक्खायहु विंदुसारणंदणुसंजायहु। तहुपुत्तु विअसोउहुउपुण्णउणउलुणामुसुअतहु उप्पण्णउ। .... णामें चंदगुत्ति तहुणंदणुसंजायउसज्जणुआणंदणु। - भद्रबाहु-चाणक्य-चंद्रगुप्त कथानक, 10-11. 27. तित्थोगालीपइन्नय- गाथा 714-752, पइण्णयसुत्ताई, सं.-मुनि पुण्यविजयजी, प्रकाशक महावीर विद्यालय, बम्बई, सन् 1984. 28. (अ) देखें- जैन धर्म का यापनीय सम्प्रदाय, डॉ. सागरमल जैन, पृ. 220 221. (ब) पेच्छइ परिब्भमन्तो दाहिण देसे सियम्बर पणओ। - पउमचरियं (विमलसूरि) प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, वाराणसी, 22/78.
SR No.006191
Book TitleJain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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