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________________ 4. 5. जैन धर्म का मौलिक इतिहास, भाग 2, पृ. 374. - (अ) गच्छाचार पइन्ना दोघट्टीवृत्ति, गाथा 82 की वृत्ति, उद्धृत जैन धर्म का मौलिक इतिहास, भाग 2, पृ. 327-330. (ब) दक्षिणापथे प्रतिष्ठानपुरे भद्रबाहु वराहाह्रौ द्वौ द्विजो कुमारौ । चकारानशनं धीरः स दिनानि बहून्यलम् ॥43॥ -बृहत्कथाकोश, कथानक संख्या 131, , श्लोक सं. : 22 - प्रबंधकोश, पृ. 2. 6. प्रबन्धचिन्तामणि, मेरुतुंग, प्रकाशक- सिंधी जैन ग्रंथमाला, ग्रन्थांक 1, शांति निकेतन, बंगाल 1933 ई., पृ. 194.. 7. आसी उज्जेणी णयरे आयारियो भद्दबाहुनामेण । - भावसंग्रह, देवसेन, 53. 8. अथास्ति विषये कान्ते पौण्डवर्धनेनामनि । कोटिमतं पुरं पूर्वं देवकोट्टं च साम्प्रतम् ॥ - बृहत्कथाकोष, हरिषेण, कथानक संख्या 131, श्लोक 1 . 9. इह अज्जखेत्ति ... कउतुकपुरम्मि... सिरिभद्दबाहु ... भद्रबाहुचरित्र, रइधू, सं. राजाराम जैन, पृ. 2. 10. नेपाल वत्तिणीए य भयवं भद्दबाहुसामी अच्छंति चौद्दस्स पुव्वी । - आवश्यकचूर्णि, भाग-2, पत्रांक 178. 11. छत्तीसे वरिससए विक्कम रायस्स मरणपत्तस्स । . सोरट्ठे उप्पण्णो सेवडसंघो हु वल्लहीए ॥ 137॥ आसि उज्जेणिणयरे आयरियो भद्दबाहु णामेण । जाणिय सुणिमित्तधरो भणिओ संघो मिओ तेण ॥ 138॥ होइइ इह दुब्भिक्खं बारहवरसाणि जाव पुण्णाणि । देसंतराई गच्छह णियणियसंघेण संजुत्ता ॥ 139॥ एक्कं पुण संतिणामो संपत्तो वलहिणामणयरीए । बहुसीससंपउत्तो विसए सोरट्ठए रस्मे ॥141॥ - भावसंग्रह, देवसेन-गाथा, 137-39, 141, माणिकचंद दिगम्बर जैन ग्रंथमाला, मुंबई 1921 ई. 12. प्राप्य भाद्रपदं देशं श्रीमदुज्जयिनीभवम् । . 23 से 43.
SR No.006191
Book TitleJain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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