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इस प्रकार यह निश्चित है कि दशाश्रुतस्कन्ध, बृहत्कल्प, व्यवहार- इन छेदसूत्रों के कर्ता भद्रबाहु (प्रथम) हैं, साथ ही निशीथ सहित आचारचूला के कर्ता भी वे हैं- यह संभावना प्रकट की गई है, जो निराधार नहीं है। इसी प्रकार, उनके उत्तराध्ययन सूत्र के संकलनकर्ता होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है, किन्तु नियुक्तियों के कर्ता आर्यभद्रबाहु प्रथम नहीं हैं, तो कौन हैं ? इस प्रश्न पर मैंने अलग से एक स्वतंत्र निबंध में विचार किया है, जो Aspects of Jainology, Vol. 6, डॉ. सागरमल जैन अभिनंदन ग्रंथ में प्रकाशित है, अतः इस निबंध को यही विराम देते हैं। संदर्भ 1. आचार्य हस्तिमल जी, जैनधर्म का मौलिक इतिहास, भाग-2, जयपुर
(राज.), 1974 ई., पृ. 327. 2. . ........... the author of the Niryukties Bhadrabahu is
indentified by the Jainas with the patriarch of that name, who died 170 A.V. There can be no doubt that they are mistaken, For the account of the seven schisms (ninhaga) in the Avasyaka Niryukti, VIII-56-100, must have been written between 584 and 609 of the Vira era. There are the dates of the 7th and 8th schims of which only the former is mentioned in the Niryukti. It is therefore certain that the Niryukti was composed before 8th schism609.A.V.-उद्धृत, जैनधर्मकामौलिकइतिहास, भाग 2, पृष्ठ 359. थेरे अज्ज जसभहस्स तुंगियायण सगुत्तस्स इमे दो थेरा अज्जभद्दबाहु पाइणसगुत्ते थेरे अज्ज संभूति विजए माढरसगुत्ते... थेरे अज्जभद्दबाहू पाइणसगोत्ते, थेरे अज्ज संभूयविजये माढरसगोत्ते। थेरस्सणं अज्जभद्दबाहुस्स पाइणगोत्तस्स इसे चत्तारि थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तं जहा-थेरे गोदासे 1 थेरे अग्गिदत्ते 2 थेरे जण्णदत्ते 3 थेरे सोमदत्ते 4 कासवगोत्ते णं।थेरेहिंतो गोदासे हितो कासवगुत्तेहिंतो इत्थणं गोदासगणे नामंगणे निग्गए, तस्स णं इमाओ चत्तारि साहाओ एवमाहिज्जंति, तं जहा- तामलित्तिया 1 कोडीवरिसिया 2 पोंडवद्धणिया 3 दासीखब्बडिया 4।
- कल्पसूत्र थेरावली, 207