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शक सं. 735 अर्थात् ई. सन् 813 में यापनीय नन्दिसंघपुण्णागवृक्षमूलगुण के अर्ककीर्ति नामक आचार्य का उल्लेख है।" अर्ककीर्ति के गुरु का नाम विजयकीर्ति और प्रेगुरु का नाम श्री कीर्ति बताया गया है। पं. नाथूरामजी प्रेमी ने यह संभावना प्रकट की है कि शाकटायन पाल्यकीर्ति इसी परंपरा के थे और आश्चर्य नहीं कि वे अर्ककीर्ति के शिष्ययाउनके सधर्मा हों।"
आंतरिक साक्ष्यों के आधार पर अमोघवृत्ति के यापनीय होने के संदर्भ में हम पूर्व में ही सूचित कर चुके हैं।" अमोघवृत्ति के यापनीय होने के संदर्भ में हम पूर्व में ही सूचित कर चुके हैं। अमोघवृत्ति पर प्रभचन्द्र का न्यास है। यद्यपि यह ग्रंथ आज पूर्ण रूप से उपलब्ध नहीं है, फिर भी इतना सुस्पष्ट है कि इसके कर्ता प्रभाचन्द्र हैं और वे प्रभाचन्द्र न्यायकुमुदचन्द्र के कर्ता प्रभाचन्द्र से भिन्न हैं। हमने आगे यह बताने का प्रयास किया है कि ये प्रभाचन्द्र सोदत्ति के लगभग ई. सन् 980 के अभिलेख में उल्लेखित यापनीय संघऔर कण्डूरगणके प्रभाचन्द्रही हैं।न्यायकुमुदचन्द्र के कर्ता प्रभाचंद्र को न्यास का कर्ता मानना भ्रांतिपूर्ण है। इस अभिलेख में यापनीय कण्डूरगण का स्पष्ट उल्लेख है। अतः, इनका यापनीय होना निर्विवाद है। इस प्रकार, शाकटायन के शब्दानुशासन पर लिखी गई स्वोपज्ञ अमोघवृत्ति और न्यास- दोनों ही यापनीय परंपरा के ग्रंथ सिद्ध होते हैं। यह स्वाभाविक भी है कि यापनीय प्रभाचन्द्र अपनी ही परंपरा के शाकटायन की कृति पर टीका लिखें। इन्हीं यापनीय प्रभाचन्द्र का एक ग्रंथ तत्त्वार्थसूत्र भी है, उसमें इन्हें बृहत्प्रभाचन्द्र (लगभग ई. सन् 980) कहा गया है, क्योंकि ये न्यायकुमुदचंद्र के कर्ता प्रभाचंद्र (ई. सन् 1020) से पूर्ववर्ती एवंज्येष्ठ थे। शाकटायन के स्त्रीमुक्ति और केवलिभुक्ति प्रकरण"
शाकटायन के इन दोनों ग्रंथों के संदर्भ में हम पूर्व में उल्लेख कर चुके हैं। स्त्रीमुक्ति प्रकरण में स्त्रीमुक्ति का समर्थन 46 श्लोकों में और केवलिभुक्ति प्रकरण में केवलिभुक्ति कासमर्थन 37 श्लोकों में किया गया है। यह स्पष्ट है कि ये दोनों मान्यताएँ दिगम्बर परंपरा से भिन्न हैं तथा श्वेताम्बर और यापनीय परंपरा की हैं। यापनीय अचेलता के साथ-साथ स्त्रीमुक्ति और केवलिभुक्ति को भी स्वीकार करते थे। इन ग्रंथों में एक ओर अचेलता का समर्थन किया गया है, तो दूसरी ओर स्त्री -मुक्ति और केवलिभुक्ति का भी समर्थन किया है। अतः इनको यापनीय मानने से कोई आपत्ति नहीं आती है।