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206 शाकटायन स्त्रीमुक्ति प्रकरण में मुनि के लिये अपवाद मार्ग में और स्त्री के लिये उत्सर्ग मार्ग में वस्त्र ग्रहण को स्वीकार करते हैं और यह बताते हैं कि ऐसी स्थिति में सवस्त्र स्त्री को स्थविर आदि के समान मुक्ति संभव है। वे लिखते हैं कि जिनशासन में स्त्रियों की चर्या वस्त्र के बिना नहीं कही गई है और पुरुष की चर्या बिना वस्त्र के कही गई है। वे आगे कहते हैं कि स्थविर (सवस्त्र मुनि) के समान सवस्त्रस्त्री की भी मुक्ति संभव है। यदि सवस्त्र होने के कारण स्त्री की मुक्ति स्वीकार नहीं करेंगे, तो फिर अर्श, भगन्दर आदिरोगों में और उपसर्ग की अवस्था में सर्वत्र मुनि की भी मुक्ति संभव नहीं होगी। - इस चर्चा से स्पष्ट रूप से दो मुख्य बातें सिद्ध होती हैं। प्रथम तो यह कि मुनि के लिये उत्सर्ग में अचेलताऔर अपवादमार्ग में सचेलता तथास्त्री के लिये उत्सर्ग मार्ग में भी सचेलता उन्हें मान्य है। इससे ही वे सवस्त्र की मुक्ति भी स्वीकार करते हैं। अतः, शाकटायन कायापनीय होना निर्विवाद है, क्योंकि यह मान्यता मात्र यापनीयों की है। संदर्भः 1. ज्ञानं चनब्रह्म यतो निकृष्टः शूद्रोऽपिवेदाध्ययनं करोति॥42॥
विद्याक्रियाचारुगुणैः प्रहीणो नजातिमात्रेणभवेत्स विप्रः। ज्ञानेनशीलेनगुणेन युक्तं तंब्राह्मणंब्रह्मविदो वदन्ति॥43॥ व्यासो वसिष्ठः कमठश्च कण्ठः शक्त्युग्दमौद्रोणपराशरौच। आचारवन्त स्तपसाभियुक्ता ब्रह्मत्वमायुः प्रतिसंपदाभिः॥44॥
- वरांगचरित सर्ग, 2 2. जैनसाहित्य और इतिहास, पं. नाथुरामप्रेमीपृ. 157. 3. शाकटायन व्याकरणम्, सं. - पंशम्भूनाथ त्रिपाठी
Indroduction, Page 14-15 4. (अ) प्रमेयकमलमार्तण्ड, अनु.- जिनमति, (ब) न्यायकुमुदचन्द्र, द्वितीय
भाग, पृ. 177-199 एवं 257-272, सं.- महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य,
पृ. 751-787 5. श्रीमन्त्युत्तराध्ययनानि, देवचन्दलालभाई, टीकाशांतिसूरी, अध्याय 26 6. रत्नाकरावतारिका-7/57, भाग 3, पृ. 93-101.
अध्यात्ममतपरीक्षा, यशोविजय. 8. शास्त्रवार्ता समुच्चय, टीका यशोविजय. 9. शाकटायनोऽपियापनीययतिग्रामाग्रणी स्वोपज्ञशब्दानुशासनवृत्तावादौ
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