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________________ 204 उद्धृतभी कियाहै। शाकटायन के द्वारा इन ग्रंथों का अपनी परंपरा के ग्रंथों के रूप में उल्लेख यही सूचित करता है कि वे दिगम्बर नहोकरयापनीय परम्पराके थे। ___(4) अमोघवृत्ति में शाकटायन ने सर्वगुप्त को सबसे बड़ा व्याख्याता बतलाया है,"ये सर्वगुप्त वही जान पड़ते हैं, जिनके चरणों में बैठकर आराधना के कर्ता शिवार्य ने सूत्र और अर्थ को अच्छी तरह से समझाथा। यह हम पूर्व में ही सिद्ध कर चुके हैं कि शिवार्य और उनकी भगवती आराधना यापनीय परंपरा से संबद्ध है। शाकटायन द्वारा शिवार्य के गुरु का श्रेष्ठ व्याख्याता के रूप में उल्लेख भी यही सूचित करता है कि वे भी यापनीयथे। (5) शाकटायन को श्रुतकेवलिदेशीयाचार्य' कहा गया है। इस संपूर्ण पद का अर्थ है श्रुतकेवली तुल्य आचार्य । पाणिनी (5/3/67) के अनुसार देशीय शब्द तुल्यता का बोधक है। श्रुतकेवली का विरुद दिगम्बर परंपरा के अनुसार उन्हें प्रदान नहीं किया जा सकता, क्योंकि जब श्रुत ही समाप्त हो गया, तो कोई श्रुतकेवली कैसे हो सकता है ? श्वेताम्बर और यापनीयों में ऐसी पदवियाँ दी जाती थीं, जैसे हेमचन्द्र को कलिकालसर्वज्ञ कहा जाताथा। इसी प्रकार, उन्हें यतिग्रामअग्रणीभी कहा गया है। यह विरुद भी सामान्यतया श्वेताम्बर और यापनीयों में ही प्रचलित था। दिगम्बर परंपरा में यापनीयों के प्रभाव के कारण ही मुनि के लिए यति (प्राकृत-जदि) विरुद प्रचलित हुआ है। हम यह पूर्व में ही स्पष्ट कर चुके हैं कि 'यति' विरुदभी उनके यापनीय होने का प्रमाण है । मलयगिरि द्वारा नन्दीसूत्र टीका में उन्हें यापनीय यतिग्राम अग्रणी कहना इसकी पुष्टि करता है।" शाकटायन के शब्दानुशासन की यापनीय टीकाएँ: ____ शाकटायन के शब्दानुशासन पर सात टीकाएँ उपलब्ध होती हैं, उनमें अमोघवृत्ति और शाकटायन-न्यास महत्वपूर्ण है । अमोघवृत्ति के लेखक स्वयं शकटायन ही है, अतः यह शब्दानुशासन की स्वोपज्ञ टीका कही जा सकती है। यह ई. सन् 814 ई. से सन् 867 के बीच कभी लिखी गई थी। पंडित नाथूरामजी प्रेमी ने इस संबंध में विस्तार से चर्चा की है। यह अमोघवृत्ति अमोघवर्प नामक शासक के सम्मान में लिखी गई है। कडब के दानपात्र
SR No.006191
Book TitleJain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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