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________________ 202 12 - पाल्यकीर्ति शाकटायन और उनका व्याकरण (ईस्वी सनन्की 10वीं शती) जैन परंपरा में ईसा की 9वीं शताब्दी में रचित शाकटायन का व्याकरण अति प्रसद्धि है। स्वयं ग्रंथकर्ता और टीकाकारों ने इसे 'शब्दानुशासन' नाम दिया है। इस शब्दानुशासन पर शाकटायन ने स्वयं ही अमोघवृत्ति नामक टीका लिखी है। शाकटायन का मूल नाम पाल्यकीर्ति है। शाकटायन पाल्यकीर्ति के सम्प्रदाय के संबंध में विद्वानों में पूर्व में काफी मतभेद रहा।' चूँकि शाकटायन के शब्दानुशासन के अध्ययन अध्यापन की प्रवृत्ति दक्षिण में दिगम्बर परंपरा में काफी प्रचलित थीऔर उस पर मुनि दयापाल आदि दिगम्बर विद्वानों ने टीका ग्रंथ भी लिखे थे, अतः दिगम्बर विद्वान् उन्हें अपने सम्प्रदाय का मानते थे। इसके विपरीत, डॉ. के.पी. पाठक आदिने शाकआयन की अमोघवृत्ति में आवश्यकनियुक्ति, छेदसूत्र और श्वेताम्बर परंपरा में मान्य कालिक ग्रंथों का आदरपूर्वक उल्लेख देखकर उन्हें श्वेताम्बर मान लिया था।' किन्तु ये दोनों धारणाएँ बाद में गलत सिद्ध हुईं। अब शाकटायन पाल्यकीर्ति के द्वारा रचित स्त्रीमुक्ति प्रकरण तथा केवलिभुक्ति प्रकरण के उपलब्ध हो जाने से इतना तो सुनिश्चित हो गया कि वे दिगम्बर परंपरा के नहीं हैं, क्योंकि स्त्री की तद्भवभुक्ति और केवलिभुक्ति की मान्यताओं का दिगम्बर परंपरा स्पष्ट रूप से विरोध करती है। यहाँ यह कहनाभी अप्रासंगिक नहीं होगा कि श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परंपरा की विभाजक रेखा के रूप में यही दो सिद्धांत प्रमुख रहे हैं। प्रसिद्ध तार्किक आचार्य प्रभाचंद्र ने प्रमेय कमलमार्तण्ड' और 'न्याय कुमुदचन्द्र में स्त्रीमुक्ति और केवलिभुक्ति का खण्डन शाकटायन के इन्हीं दो प्रकरणों को पूर्व पक्ष के रूप में रखकर किया है। अतः, वे दिगम्बर परंपरा के नहीं हो सकते। यद्यपिश्वेताम्बर परंपरा के वादिवेताल शांतिसूरिने अपनी उत्तराध्ययन की टीका में, रत्नप्रभने रत्नाकरावतारिका में और यशोविजय के 'अध्यात्ममत परीक्षा' तथा 'शास्त्रवार्तासमुच्चय" की टीका में स्त्रीमुक्ति और केवलिभुक्ति के समर्थन में इन्हींप्रकरणों की कारिकाएं उद्धृत की हैं, किन्तु इससे यह तो सिद्ध नहीं होता है कि वे श्वेताम्बर थे, हाँ, हम इतना अवश्य कह सकते हैं कि श्वेताम्बर आचार्यों ने भी स्त्रीमुक्ति और केवलिभुक्ति के अपने पक्ष में समर्थन के लिए उनकी कारिकाएँ उद्धृत करके उन्हें अपने पक्ष का समर्थक बताते हुए उनके प्रति
SR No.006191
Book TitleJain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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