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________________ $.973 §. 1373 $. 1473 = $. 1773 = वीर - निर्वाण 1500 में दशाश्रुत का विच्छेद - निर्वाण 1900 में सूत्रकृतांग का विच्छेद 2000 में विशाख मुनि के समय में निशीथ का विच्छेद 2300 में आचारांग का विच्छेद श्रुत में दुप्पसह मुनि के होने के बाद यह कहा गया है कि वे ही अंतिम आचारधर होंगे। उसके बाद अनाचार का साम्राज्य होगा। इसके बाद निर्दिष्ट है कि20500 में उत्तराध्ययन का विच्छेद वीर - निर्वाण - वीर निर्वाण वीर - निर्वाण = = वीर - निर्वाण वीर - निर्वाण दुसमा ई. 19973 = ई. 20373 = $. 20473 = 200 20900 में दशवैकालिकसूत्र का विच्छेद 21000 में दशवैकालिक के अर्थ का विच्छेद, दुप्पसह मुनि की मृत्यु के बाद $.20473 = वीर-निर्वाण 21000 पर्यंत आवश्यक, अनुयोगद्वार और नन्दीसूत्र अव्यवच्छिन्न रहेंगे । -facumeft, my 697-866 तित्थोगालीय प्रकरण श्वेताम्बरों के अनुकूल ग्रंथ है, ऐसा उसके अध्ययन से प्रतीत होता है। उसमें तीर्थंकरों की माताओं के 14 स्वप्नों का उल्लेख है - गाथा 100, 1024, स्त्री-मुक्ति का समर्थन भी इसमें किया गया है - गाथा 556, आवश्यक नियुक्ति की कई गाथाएँ इसमें आती हैं, गाथा 70 से, 383 से इत्यादि, अनुयोगद्वार और नंदी का उल्लेख और उनके तीर्थपर्यंत टिके रहने की बात, दश (अच्छेरे) .. आश्चर्य की चर्चा - गाथा 887 से, नन्दीसूत्रगत संघस्तुति का अवतरण गाथा 848 से है। आगमों के क्रमिक विच्छेद की चर्चा जिस प्रकार जैनों में है, उसी प्रकार बौद्धों के अनागतवंश में भी त्रिपिटक के विच्छेद की चर्चा की गई है। इससे प्रतीत होता है कि श्रमणों की यह एक सामान्य धारणा है कि श्रुत का विच्छेद क्रमशः होता है । तित्थोगाली अंगविच्छेद की चर्चा है। इस बात को व्यवहारभाष्य के कर्त्ता ने भी माना है “तित्थोगाली एवं वत्तव्या होड़ आणुपुव्वीए । जे तस्स उ अंगस्स वुच्छेदो जहिं विणिद्दिट्ठो ।।" - व्यवहार भाष्य 10/704 इससे जाना जा सकता है कि अंगविच्छेद की चर्चा प्राचीन है और यह दिगम्बर - श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों में चली है। ऐसा होते हुए भी यदि श्वेताम्बरों ने
SR No.006191
Book TitleJain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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