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________________ 199 तिलोयपण्णति में आगमों के विच्छेद की बात आजाने से उसकायापनीय होना नकारा नहीं जा सकता है। क्योंकि आगम विच्छेद की यह चर्चा केवल दिगम्बर में उठी हो, ऐसी बात नहीं है, वह यापनीयों और श्वेताम्बरों में भी हुई है। इस संबंध में वास्तविकता क्या है, इस प्रश्न पर पं. दलसुखभाई मालवणिया ने जैन साहित्य के बृहद् इतिहास की भाग 1 की प्रस्तावना में गंभीरता से विचार किया है। हम यहाँ उन्हीं के विचारों को शब्दशः उद्धृत कर रहे हैं, ताकि पाठक यथार्थता को समझ सकें। वे लिखते हैं कि “अब आगमविच्छेद के प्रश्न पर विचार किया जाय।आगमविच्छेद के विषय में भी दो मत हैं। एक के अनुसार सुत्त विनष्ट हुआ है, तब दूसरे के अनुसार सुत्त' नहीं, किन्तु सुत्तधर - प्रधान अनुयोगधर विनष्ट हुए हैं। इन दोनों मान्यताओं का निर्देश नन्दीचूर्णि जितना तो पुराना है ही।आश्चर्य तो इस बात का है कि दिगम्बर परंपरा के धवला (पृ. 65) में तथा जयधवला (पृ. 83) में दूसरे पक्ष को माना गया है, अर्थात् श्रुतधरों के विच्छेद की चर्चा प्रधान रूप से की गई है और श्रुतधरों के विच्छेद से श्रुत का विच्छेद फलित मानागया है, किन्तु आजका दिगम्बर समाजश्रुत काही विच्छेद मानता है। इससे भी सिद्ध है कि पुस्तक के लिखित आगमों का उतना ही महत्व नहीं है, जितनाश्रुतधरों की स्मृति में रहे हुए आगमोंका। जिस प्रकार धवला में श्रुतधरों में विच्छेद की बात कही है, उसी प्रकार तित्थोगाली प्रकीर्णक में श्रुत के विच्छेद की चर्चा की गई है। वह इस प्रकार है प्रथम भगवान् महावीर से भद्रबाहु तक की परंपरा दी गई है और स्थूलभद्र भद्रबाहु के पास चौदहपूर्व की वाचना लेने गये- इस बात का निदेश है। यह निर्दिष्ट है कि दसपूर्वधरों में अंतिम सर्वमित्र थे। उसके बाद निर्दिष्ट है कि वीरनिर्वाण के 1000 वर्ष बाद पूर्वो का विच्छेद हुआ। यहाँ पर यह ध्यान देना जरूरी है कि यही उल्लेख भगवतीसूत्र (2.8) में भी है। तित्थोगाली में उसके बाद निम्न प्रकार से क्रमशः श्रुतविच्छेद की चर्चा की गई हैई.723 = वीर-निर्वाण 1250 में विवाह प्रज्ञप्ति और छ: अंगों का विच्छेद ई.773 = वीर-निर्वाण 1300 में समवायांग का विच्छेद ई. 823 = वीर-निर्वाण 1350 मेंठाणांग का विच्छेद ई. 873 = वीर-निर्वाण 1400 में कल्प-व्यवहार का विच्छेद
SR No.006191
Book TitleJain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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