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मान्यता उनके साम्प्रदायिक आग्रह का ही परिणाम है । यह सत्य है कि इन ग्रंथों में विषयवस्तुगत और शैलीगत समानताएँ हैं, किन्तु इस समानता के आधार पर यह निष्कर्ष निकाल लेना कि ये सभी यतिवृषभ की कृतियाँ हैं, उचित नहीं है।
यतिवृषभ से आर्य मंक्षु और नागहस्ति के शिष्य मानने का आधार यतिवृषभ द्वारा क्षु और नागहस्ति के मतों का क्रमशः अपव्वाइजंत और पव्वाइजंत के रूप में उल्लेख करना है। पं. हीरालालजी ने जयधवला के आधार पर इसे स्पष्ट करते हुए लिखा है- “जो उपदेश सर्व आचार्यों से सम्मत है, चिरकाल से अविच्छिन्न सम्प्रदाय द्वारा प्रवाहरूप से आ रहा है और गुरु-शिष्य परंपरा के द्वारा प्रतिरूप किया जाता है, वह प्रवाह्यमान (पव्वाइजंत) उपदेश कहलाता है। इससे भिन्न, जो सर्व आचार्य सम्मत न हो और अविछिन्न गुरु-शिष्य परंपरा से नहीं आ रहा हो, ऐसे उपदेश को अप्रवाह्यमान (अपव्वाइजंत) उपदेश कहते हैं। आर्यमंक्षु आचार्य के उपदेश को अप्रवाह्यमान और नागस्ति क्षमाश्रमण के उपदेश को प्रवाह्यमान उपदेश समझना चाहिए । पं. हीरालालजी का कथन है कि वह (कम्मपयडी) आ. यतिवृषभ के सामने उपस्थित ही नहीं थी, बल्कि उन्होंने प्रस्तुत चूर्णि में उसका भरपूर उपयोग भी किया है।' कम्मपयडी को शिवशर्मसूरि की रचना माना जाता है - इनका काल 5 वीं शती है, अतः संभव यही है कि यतिवृषभ का काल इनके पश्चात् अर्थात् ईसा की छठवीं सातवीं शती हो । गुणस्थान सिद्धांत के विकास की दृष्टि से यह मानना होगा कि आर्य मंक्षु और नागहस्ति कर्मप्रकृतियों के विशिष्ट ज्ञाता थे, वे कसायपाहुड के वर्त्तमान स्वरूप के प्रस्तोता नहीं थे, मात्र यही माना जा सकता है कि कसायपाहुड की रचना का आधार उनकी कर्मसिद्धांत संबंधी अवधारणाएँ हैं, क्योंकि आर्य मंक्षु और नागहस्ति का काल ई. सन् की दूसरी शताब्दी का है। यदि हम कसायपाहुड में प्रस्तुत गुणस्थान की अवधारणा पर विचार करें, तो ऐसा लगता है कि कसायपाहुड की रचना गुणस्थान सिद्धांत की अवधारणा के निर्धारित होने के बाद हुई है। अर्द्धमागधी आगम साहित्य में, यहाँ तक कि प्रज्ञापना जैसे विकसित आगम और तत्त्वार्थसूत्र में भी गुणस्थान का सिद्धांत सुव्यवस्थित रूप नहीं ले पाया था, जबकि कसायपाहुड में गुणस्थान - सिद्धांत सुव्यवस्थित रूप लेने के बाद ही रचा गया है । अतः, यदि तत्त्वार्थ का रचनाकाल ईसा की दूसरी-तीसरी शती है, तो उसका काल ईसा की तीसरी - चौथी शताब्दी मानना होगा, किन्तु यदि हम प्रज्ञापना के कर्त्ता आर्यश्याम के बाद नन्दीसूत्र स्थविरावली