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11- यतिवृषभ और उनके कसायपाहुड के चूर्णिसूत्र और तिलोयपण्णति ( ईस्वी सन् की 9वीं शती)
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यह हम सिद्ध कर चुके हैं कि कसायपाहुड मूलतः उत्तर भारत की अविभक्त निर्ग्रथ परंपरा में निर्मित हुआ था, अतः उसके उत्तराधिकारी यापनीय और श्वेताम्बर दोनों ही रहे हैं। जहाँ तक कसायपाहुड के चूर्णिसूत्रों का प्रश्न है, वे यतिवृषभ के कहे जाते हैं। यतिवृषभ का एक अन्य ग्रंथ तिलोयपण्णत्ति भी उपलब्ध है, किन्तु जैसा कि प्रबुद्ध दिगम्बर विद्वान् पं. नाथूराम प्रेमी, पं. फूलचंदजी सिद्धांतशास्त्री आदि का कहना है कि इस ग्रंथ में पर्याप्त मिलावट हुई है, अतः उसके आधार पर यतिवृषभ की परंपरा का निश्चय नहीं किया जा सकता है, किन्तु यदि हम मात्र कसायपाहुड की चूर्णि पर विचार करें, तो उसमें ऐसा कोई भी संकेत उपलब्ध नहीं होता, जिनके आधार पर यतिवृषभ को यापनीय मानने में बाधा उत्पन्न हो । पं. हीरालालजी जैन' ने कसायपाहुड की प्रस्तावना में स्पष्टरूप से यह स्वीकार किया है कि यतिवृषभ के सम्मुख षट्खण्डागम, कम्मपयडी, सतक और सित्तरी- ये चार ग्रंथ अवश्य विद्यामान् थे । पुनः, उन्होंने विस्तारपूर्वक उन संदर्भों को भी प्रस्तुत किया है, जो कसायपाहुडचूर्णि और इन ग्रंथों में पाये जाते हैं। विस्तारभय से हम यहाँ केवल निर्देश मात्र कर रहे हैं । उन्होंने कसायपाहुडचूर्णि, कम्मपयडीचूर्णि, सतकचूर्णि और सितरीचूर्णि का तुलनात्मक विवरण भी प्रस्तुत किया है । तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययन के इच्छुक विद्वान् उनकी कसायपाहुड की भूमिका देख सकते हैं। यद्यपि कसायपाहुड की चूर्णि की कम्मपयडी चूर्णि, सतकचूर्णि और सित्तरीचूर्णि से जो शैली और विचारगत समरूपता है, उसके आधार पर उन्होंने कम्मपयडीचूर्णि, सतकचूर्णि और सित्तरीचूर्णि के रचयिता भी यतिवृषभ ही हैं- ऐसा अनुमान किया है। वे लिखते हैं कि सतकचूर्णि, सित्तरीचूर्णि, कसायपाहुडचूर्णि और कम्मपयडीचूर्णि इन चारों ही चूर्णियों के रचयिता एक ही आचार्य हैं। कसायपाहुडचूर्णि के रचयिता यतिवृषभ प्रसिद्ध ही हैं। शेष तीनों चूर्णियों के रचयिता, उपर्युक्त उल्लेखों से वे ही सिद्ध होते हैं । अतः, , चारों चूर्णियों की रचनाएँ आचार्य यतिवृषभ की ही कृतियाँ हैं ।
किन्तु, यदि हम निष्पक्ष भाव से विचार करें, तो पं. हीरालालजी की यह
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