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संदर्भ1. आवश्यक टीका की अंतिम प्रशस्ति में उन्होंनेलिखा है- 'समाप्ता
चेयं शिष्यहिता नाम आवश्यकटीका। कृतिः सिताम्बराचार्यजिनभट- निगदानुसारिणो विद्याधरकुलतिलकाचार्यजिनदत्तशिष्यस्यधर्मतोयाकिनी महत्तरासूनोरल्पमतेराचार्य हरिभद्रस्य। जाइणिमयहरिआएरइया एएउधम्मपुत्तेण। हरिभद्दायरिएणंभवरिहं इच्छामाणेण॥
- उपदेशपाद की अंतिम प्रशस्ति चिरंजीवउभवविरहसूरित्ति। - कहावली, पत्र 301 अ समदर्शी आचार्य हरिभद्र, पं. सुखलालजी, पृ. 40
षड्दर्शनसमुच्चय, सम्पादक डॉ. महेंद्रकुमार, प्रस्तावना, पृ. 14 6. वही, प्रस्तावना, पृ. 19
समदर्शी आचार्य हरिभद्र, पृ. 43 वही, पृ.47 षड्दर्शनसमुच्चय, सम्पादक डॉ. महेंद्रकुमार, प्रस्तावना, पृ. 14 वही, पृ. 19 कर्मणोभौतिकत्वेन यद्वैतदपि साम्प्रतम। आत्मनोव्यतिरिक्तं तत् चित्रभावंयतोमतम्॥ शक्तिरूपंतदन्येतु सूरयः सम्प्रचक्षते। अन्येतु वासनारूपं विचित्रफ्लदंमतम्॥
.. -शास्त्रवार्तासमुच्चय, 95-96 . 12. समदर्शी आचार्य हरिभद्र, पृ. 53-54 13. वही, पृ.55 14. ततश्चेश्वर कर्तृत्त्ववादोऽयं युज्यतेपरम्।
सम्यग्न्यायाविरोधेन यथाऽऽहुःशुद्धबुद्धतः॥ ईश्वरः परमात्मैव तदुक्तव्रतसेवनात्। यतोमुक्तिस्ततस्तस्याः कर्ता स्यादुणभावतः॥
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