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मोक्षस्वरूपाष्टक। इन सभी अष्टकों में अपनेनाम के अनुरूप विषयों की चर्चा है।
धूर्ताख्यान
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यह एक व्यंग्यप्रधान रचना है। इसमें वैदिक पुराणों में वर्णित असम्भव और अविश्वसनीय बातों का प्रत्याख्यान पांच धूर्तों की कथाओं के द्वारा किया गया है। लाक्षणिक शैली की यह अद्वितीय रचना है। रामायण, महाभारत और पुराणों में पाई जानेवाली कथाओं की अप्राकृतिक, अवैज्ञानिक, अबौद्धिक मान्यताओं तथा प्रवृत्तियों का कथा के माध्यम सेनिराकरण किया गया है। व्यंग्य और सुझावों के माध्यम सेअसम्भव और मनगढ़ंत बातों कोत्यागनेका संकेत दिया गया है। खड्डपना के चरित्र और बौद्धिक विकास द्वारा नारी कोविजय दिलाकर मध्यकालीन नारी के चरित्र कोउद्घाटित किया गया है।
ध्यानशतकवृत्ति
पूर्व ऋषिप्रणित ध्यानशतक ग्रंथ का गम्भीर विषय - आर्त, रौद्र, धर्म, शुक्ल - इन चार प्रकार के ध्यानों का सुगम विवरण दिया गया है। ध्यान का यह एक अद्वितीय ग्रंथ है।
यतिदिनकृत्य
इन ग्रंथ में मुख्यतया साधु के दैनिक आचार एवं क्रियाओं का वर्णन गया है। षडावश्यक के विभिन्न आवश्यकों कोसाधु को अपनेदैनिक जीवन में पालन करना चाहिए, इसकी विशद विवेचना इस ग्रंथ में की गई है।
पंचाशक (पंचासग)
आचार्य हरिभद्रसूरि की यह कृति जैन महाराष्ट्री प्राकृत में रचित है। इसमें उन्नीस पचांशक हैं, जिसमें दूसरेमें 44 और सत्तरहवें में 52 तथा शेष में 50-50 पद्य गणि शिष्य श्री चंद्रसूरि के शिष्य यशोदेव नेपहलेपंचाशक पर जैन महाराष्ट्री में वि.सं. 1172 में एक चूर्णि लिखी थी, जिसमें प्रारम्भ में तीन पद्य और अंत में प्रशस्ति के चार पद्य हैं, शेष ग्रंथ गद्य में है, जिसमें सम्यक्त्व के प्रकार, उसके यातना, अभियोग और दृष्टान्त के साथ-साथ मनुष्य भव की दुर्लभता आदि अन्यान्य विषयों का निरूपण किया गया है। समाचारी विषय का अनेक बार उल्लेख हुआ है। मण्डनात्मक शैली में रचित होने के कारण इसमें 'तुलादण्ड न्याय' का उल्लेख भी है। आवश्यक चूर्णि के