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________________ 155 धर्मालिंगषोडशक, (5) लोकोत्तरतत्त्वप्राप्तिषोडशक, (6) जिनमंदिर निर्माणषोडशक, (7) जिनबिम्बषोडशक, (8) प्रतिष्ठाषोडशक, (9) पूजास्वरूपषोडशक, (10) पूजाफ्लषोडशक, (11) श्रुतज्ञानलिंगषोडशक, (12) दीक्षाधिकारिषोडशक, (13) गुरुविनयषोडशक, (14) योगभेद षोडशक, (15) ध्येयस्वरूपषोडशक, (16) समरषोडशका इनमें अपने-अपनेनाम के अनुरूप विषयों की चर्चा है। विंशतिविंशिका - विंशतिविंशिका नामक आचार्य हरिभद्र की यह कृति 20-20 प्राकृत गाथाओं में निबद्ध है। येविंशिकाएं निम्नलिखित हैं- प्रथम अधिकार विंशिका में 20 विंशिकाओं के विषय का विवेचन किया गया है। द्वितीय विंशिका में लोक के अनादि स्वरूप का विवेचन है। तृतीय विंशिका में कुल, नीति और लोकधर्म का विवेचन है। चतुर्थ विंशिका का विषय चरमपरिवर्त है। पांचवीं विंशिका में शुद्ध धर्म की उपलब्धि कैसे होती है, इसका विवेचन है। छठी विंशिका में सद्धर्म का एवं सातवीं विंशिका में दान का विवेचन है। आठवीं विंशिका में पूजाविधान की चर्चा है। नवीं विंशिका में श्रावकधर्म, दशवीं विंशका में श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं एवं ग्यारहवीं विंशिका में मुनिधर्म का विवेचन किया गया है। बारहवीं विंशिका भिक्षा-विंशिका है। इसमें मुनि के भिक्षा-सम्बंधी दोषों का विवेचन है। तेरहवीं, शिक्षा-विंशिका है। इसमें धार्मिक जीवन के लिए योग्य शिक्षाएं प्रस्तुत की गई हैं। चौदहवीं अंतरायशुद्धि विंशिका में शिक्षा के संदर्भ में होनेवालेअंतरायों का विवेचन है। ज्ञातव्य है कि इस विंशिका में मात्र छ: गाथाएं ही मिलती हैं, शेष गाथाएं किसी भी हस्तप्रति में नहीं मिलती हैं। पंद्रहवीं आलोचना-विंशिका है। सोलहवीं विंशिका प्रायश्चित्त-विंशिका है। इसमें विभिन्न प्रायश्चित्तों का संक्षिप्त विवेचन है। सत्रहवीं विंशिका योगविधान-विंशिका है। उसमें योग के स्वरूप का विवेचन है। अट्ठारहवीं केवलज्ञान विंशिका में केवलज्ञान के स्वरूप का विश्लेषण है। उन्नीसवीं सिद्धविभक्ति-विंशिका में सिद्धों का स्वरूण वर्णित है। बीसवीं सिद्धसुख-विंशिका है, जिसमें सिद्धों के सुख का विवेचन है। इस प्रकार इन बीस विंशिकाओं में जैनधर्म और साधनासेसम्बंधित विविध विषयों का विवेचन है। योगविंशिका यह प्राकृत में निबद्ध मात्र 20 गाथाओं की एक लघु रचना है। इसमें जैन
SR No.006191
Book TitleJain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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